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२ प्राछित दिराय ने सुध करे, पिण न कहे ओरां पास।
ते श्रावक गिरवा गंभीर छै, बीर वखांण्या तास ।। ३ दोष रा धणी ने तो कहे नही, उण रा गुर ने पिण नहीं कहे जाय।
ओरा लोकां आगे कहितो फिरे, तिण री परतीत किण विध आय। इत्यादिक घणां दिनां पछे दोष न कहिणो रास में कह्यो छै। तथा 'साध सीखामण' दाळ रा दूहा में घणा दिन हुवां पछे दोष कहे तिण ने अपछंदो कह्यो, निरलज कह्यो, नागड़ो कह्यो, मर्यादा रो लोपणहार कह्यो, कषाइ दुष्ट आत्मा रो धणी कह्यो छै।
तथा चोतीसा रे वर्स आर्सा रे मर्यादा बांधी तिण में कह्यो- ग्रहस्थ आगे टोळा रा साध आर्यां री निंदा करे तिण ने घणी अजोग जाणणी। तिण ने एक मास पांचूं विगै रा त्याग छै। जितरी वार करे जितरा मास पांचूं विगैरा त्याग तथा तूंकारो काढ़े तूं सूंसां री भागळ तूं झूठाबोली, इत्यादिक रो प्राछित कह्यो ते पाळणो तथा साधां ने आय ने कहणो। गुर देवे ते लेणो, एहवो चोतीसा रा लिखत में कह्यो। उसभ उदे टोळा बारे नीकळ्या तिण ने साध सरधणो नहीं, च्यार तीर्थ में गिणणो नहीं, एहवा ने वांदे पूजे तिके पिण आज्ञा बारे छ।
तथा पचासा रा लिखत में कहयो-कर्म धको दीधां टोळा सूं टळे तो टोळा रा साध साधव्यां रा हुंता अणहुंता अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। टोळा ने असाध सरध ने नवी दिख्या लेवे तो पिण अठी रा साध साधव्यां री संका घालण रा त्याग छै।
तथा गुणसठा रा लिखत में पिण इमहीज कह्यो-टोळा बारे नीकळी एक रात उपरंत सरधा रा क्षेत्रां में रहिवा रा त्याग छै ! उपगरण टोळा मांहे करे ते परत पाना लिखे जाचे ते साथे ले जावण रा त्याग छै। तथा पचासा रा लिखत में कयो-पेला रा दोष धारने भेळा करे ते ते एकंत मिरषावादी अन्याइ छै। किण ने ही क्षेत्र काचो बताया किण ही ने कपड़ादिक मोटो दीधो इत्यादिक कारणे कषाय उठे जद गुरवादिक री निंद्या करण रा अवर्णवाद, बोलण रा एक आगे बोलण रा माहोमां मिल-मिल जिलो बांधण रा त्याग छै, अनंता सिद्धां री आण छै। गुरवादिक रे आगे भेळो तो आप रे मुतळब रहे पछै आहारादिक घणा थोड़ा रो कपड़ादिक रो नाम लेई ने अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। इम इत्यादिक घणे ठामें कयो छै, ते माटे अवनीतपणो छोड़े, अने मर्यादा सुध पाळे, आखी उमर ताई तन मन सूं सेवा भक्ति करे आछी तरे सूं पूर्व उपगार लेखवी ने संजम सम्यक्त रा दाता जाणी ने विनय में प्रवर्ते। तथा ठाणांअंग ठाणे तीजे तीनां सूं उरण हुवे तेह समास नी ढाळ भीखणजी, स्वामी कीधी तेह माहे सिष्य गुरां सूं उरण हुवे ते माहिली केयक गाथा१ जो गुर भगता सिख सुवनीत, गुर सूं उरण हुवे इण रीत।
ए ठाणां अंग सूत्र रे मांय, तीजे ठाणे कयो जिनराय॥ २ गुर कीधो भारी उपगार, उतारयो संसार थी पार।
कियो मुगत तणो अधिकारी, त्यां ने किण विध घाळे विसारी।। १. लय-विनै रा भाव सुण-सुण गूंजे।
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तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था