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________________ नवमी हाजरी पांच सुमति तीन गुप्त पंच महाव्रत अखंड आराधणा। ईर्य्या भाषा एषणा में सावचेत रहणों। आहारपाणी लेणो ते पक्की पूछा करीने लेणो । सूजतो आहार पिण आगला रो अभिप्राय देखने लेणो। पूजतां परठतां सावधान पणे रहणो । मन वचन काया गुप्ति में सावचेत रहणो। तीर्थंकर नी आज्ञा अखंड आराधणी । भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धान्त देखने आचार श्रद्धा प्रकट कीधी - विरत धर्म, अविरत ते अधर्म | आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारे अधर्म। असंजती रो जीवणो बंछे ते राग, मरणो बंछे ते द्वेष, तिरणो बंछे ते वीतराग देव नो मार्ग छै । तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी। संवत् १८४५ रे वरस भीखणजी स्वामी मर्यादा बांधी - सरधा आचार रो तथा कल्प रा सुत रो बोल री समझ न पड़े तो गुरु तथा भणणहार साधू कहे ते मानणों न वेसै तो केवळ्यां ने भळावणों कह्यो । इमहीज पचासा रा गुणसठा रा लिखत में कोसरधा आचार रो बोल बड़ा सूं चरचणों, बड़ा कहे ते मान लेणो पिण ओरां सूं चरच ने संका घालणी नहीं, एहवो कह्यो । तथा पेंताळीसा रा लिखत में कह्यो- साधां रा मन भांग ने आप रे जिले करे ते तो महाभारीकर्मो यो तथा ओर लिखत में रास में पिण जिलो बांधणो निषेध्यो छै तथा बावना रे वर्ष आय ने मर्यादा बांधी तिण में पिण कयो - किण ही साध आर्यां मां दोष देखे तो ततकाळ धणी ने कहणो के गुरां ने कहणो, पिण ओर ने कहणो नहीं । किण ही आर्य्यां दोष जाणने सेव्यो हुवे ते पाना में लिखिया विना विगै तरकारी खांणी नही, कदाच कारण पड़या न लिखे तो ओर आय ने कहणो, सायद करने पछे पिण वेगो लिखणो पिण विनां लिख्यां रहणो नहीं, आय ने गुरां ने मूहढा सूं कहणो नहीं, मांहोमां अजोग भाषा बोलणी नही, कोइ साध - साधवियां रा अवगुण काढ़े तो सांभळवा रा त्याग छै, इतरो कहिणो-स्वामी जी ने कहिजो तथा पचासा रा लिखत में हव कयो-किण ही साध आय में दोष देखे तो ततकाळ धणी ने कहणो अथवा गुरां ने कहणो पिण ओरां ने न कहिणो, घणा दिन आडा घालने दोष बतावे तो प्राछित रो धणी उहि छै तथा विनीत अवनीत री चोपी में पिण एहवी गांथा कही १ दोष' देखे किण ही साध में, कहि देणो तिण नै एकंतो रे । उमांने नहीं तो कहणो गुरु कनें, ते श्रावक छै बुधिवंतो रे ॥ सुवनीत श्रावक एहवा । १. लय - चंद्रगुप्त राजा सुणो । नवमीं हाजरी : २३१
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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