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________________ २९ टोळा ने गुर सूं जागे वेर, अविनीत हुवै छै एहवा गेर। केयक एहवा हुवे अवनीत, त्यां ने छेड़वियां बोले विपरीत।। ते फिट २ हुवे इहलोक मझार, आगे नरक निगोद में खाए मार। घणो भमण करे संसार मझार, तेह नो कहितां नावे पार ।। ३१ नीच ने वधारया आछो नांहि, ज्यूं अविनीत जांण लेजो मन मांहि। इम सांभळ ने उत्तम नरनार, अवनीत ने नीच नो संग निवार ।। इहा वनीत तथा अवनीत रा लखण ओळखाया ते उत्तम जीव सांभळी ने अवगुण छोड़े। गुण आदरे। नीच अवनीत ने वधारणो नहीं, तिण की संगत न करणी। तथा पेंताळीसा रा लिखत में कह्यो-"टोळा मांहि कदाच कर्म जोगे टोळा बारे परे तो टोळा रा साधु-साधवियां रा अंसमात्र अवगुणवाद बोलण रा त्याग छै, यां रा अंस मात्र संका पड़े आसता उतरे ज्यूं बोलण रा त्याग छै। टोळा मां सूं फार साथे ले जावा रा त्याग छै। ओगुण बोलण रा त्याग छै। माहोमांहि मन फटे ज्यूं बोलण रा त्याग छै।" इम पेंताळीसा रा लिखत में कह्यो। ते भणी सासण री गुणात्कीर्तन रूप बात करणी। भागहीण हुवे सो उतरती करे, तथा भागहीण सुणे तथा सुणी आचार्य ने न कहे ते पिण भागहीण, तिणने तीर्थंकर नो चोर कहणो, हरामखोर कहणो, तीन धिकार देणी। आयरिए आराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्थ वि णं पूयंति, जेण जाणंति तारिसं ।। आयरिए नाराहेइ, समणे यावि तारिसो। गिहत्था वि णं गरहंति, जेण जाणंति तारिसं। • इति 'दशवैकालिक में कह्यो ते मर्यादा आज्ञा सुध आराध्यां इहभव परभव में सुख कल्याण हुवे। १. दसवैआलियं, ५/२/४५,४० २३० तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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