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ते पाना में लिख्या बिना विगै तरकारी खाणी नहीं। कदाच कारण पड्यां न लिखै तो और आर्थ्यां ने कहणो। सायद करने पछै पिण बेगो लिखणो। पिण बिना लिख्यो रहिणो नहीं। आयने गुरां ने मूंहढा थी कहणो नहीं। अजोग भाषा बोलणी नहीं। एहवो बावना रा लिखत में कह्यो ते मर्यादा सुद्ध पाळणी। तथा पैंताळीसा रा लिखत में एहवो कह्यो-टोळा मांही कदाच कर्म जोग टोळा बारै पड़े तो टोळा रा साध साधवियां रा अंसमात्र अवगुण बोलण रा त्याग छै। यारी अंसमात्र शंका पडै आसता उतरै ज्यूं बोलण रा त्याग छै। टोळा मांहे सूं फाड़नै साथै ले जावण रा त्याग छ। उ आवै तो ही ले जावण रा त्याग छै। टोळा माहै नै बारै निकल्या पिण अवगुण बोलण रा त्याग छै, माहोमाहै मन फटै ज्यूं बोलण रा त्याग छै। इम पैंताळीसा रा लिखत में पिण अंसमात्र अवगुण बोलण रा त्याग कह्या छै ते भणी उतरती बात करै तथा मन सहित सुणै तथा सुणी आचार्य नै न कहै तिणनै तीर्थंकर नो चोर कहिणो, हरामखोर कहिणो, तीन धिकार देणी।
आयरिए आराहेइ, समणे यावि तारिसो । गिहत्था वि णं पूयंति, जेण जाणंति तारिसं॥ आयरिए नाराहेइ, समणेयावि तारिसो।
गिहत्था वि णं गरहंति, जेण जाणंति तारिसं । इति 'दशवैकाळिक में कह्यो मर्यादा आग्या सुध आराध्यां इहभव परभव में सुख किल्याण हुवै।
१. दसवेआळियं, ५/२/४५,४०
२१० - तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था