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________________ पांचवी हाजरी सम्वत् १८५० वर्ष स्वामी भीखणजी सर्व साधां ने सुध आचार पाळणो नै मांहोमांहै गाढ़ो हेत राखणो, तिण ऊपर मरजादा बांधी-"कोई टोळा रा साधसाधवियां में साधपणो सरधो, आप में साधपणो सरधो, तिको टोळा में रहिजो। कोई कपट दगा सूं साधां भेळो मांहि रहै, तिण नै अनन्ता सिद्धां री आंण छै। पांच पदां री आंण छै। साध नांव धरायनै असाधां भेळो रह्यां अनंत संसार वधै छै। जिण रा चोखा परिणाम हुवै ते इतरी परतीत उपजावो। किण ही साध-साधवियां रा अवगुण बोलनै किण ही नै फाइनै, मन भांगनै खोटा सरधावण रा त्याग छै। किणसूई साधपणो पलतो दीसै नहीं, अथवा सभाव किणसूइ मिलतो दीसै नहीं, अथवा कषाई धेठो जाणनै कोई कनै न राखै, अथवा क्षेत्र आछो न बतायां अथवा कपड़ादिक रै कारणै अथवा अजोग जाणनै और साधु गण सूं दूरो करै, अथवा आपने गण सूं दूरो करतो जाणनै इत्यादिक कारण उपनै टोळा सूं न्यारो पड़े तो किण ही साध-साधवियां रा अवगुण बोलण रा त्याग छै। हुँतो अणहुंतो खूचणो काढ़ण रा त्याग छै। रहिसेरहिसे लोकां रे संका घालनै आसता उतारण रा त्याग छै। कदा कर्म जोगे कदा क्रोध रे वशै साध-साधवियां में असाधपणो सरधै आप में पिण असाधपणो सरधै फेर साधपणो ळेवै तो ही पण अठीला साध-साधवियां री संका घालण रा त्याग छै। खोटी कहण रा त्याग छै ज्यूं रा ज्यूं पाळणा छै। पछै यूं कहिण रा पिण त्याग छै, म्हे तो फेर साधपणो लीधो अबे म्हारै आगला सूंसां रो अटकाव कोई नहीं। किण ही साध साधव्यां नै पिण साध साधवियां री आसता उतरै साध आर्या री संका पड्रै ज्यूं बोलण रा त्याग छै। किण ही साध आर्यों में दोष देखै तो ततकाळ धणी नै कहिणो, अथवा गुरां नै कहिणो, पिण ओरां नै न कहिणो। घणा दिन आड़ा घाळनै दोष बतावै तो प्राछित रो धणी उहीज छै। प्राछित रा धणी नै याद आवै तो प्राछित उण नै पिण लेणो, नहीं लेवै तो उणनै मुसकळ छै, ए पचासा रा लिखत में कह्यो। तथा संवत् १८४५ रा लिखत में कह्यो-"टोळा मांहे पिण सांधां रा मन भांगनै आप २ नै जिले करै ते तो महामारीकर्मो जाणवो। इसड़ी घात पावड़ी करै ते तो अनंत संसार री साई छै। इण मरजादा प्रमाणे चालणी नावै तिण नै संलेखणा मंडणो सिरै छै। धनै अणगार तो नव मास माहे आत्मा नो किल्याण कीधो ज्यूं इण नै पिण आत्मा रो सुधारो करणो। पिण अप्रतीत-कारियो काम न करणो। रोगिया बिचै तो सभाव रा अजोग नै माहे राख्यो भूडो छै। यां बोलां री मरजादा बांधी ते लिखी छै ते चोखी पाळणी। अनन्ता सिद्धां री साख करनै पचखांण छै। ए पचखांण पाळण रा परिणाम पंचवीं हाजरी : २११
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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