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________________ " ४ सं० १९१५ फा० कृ० ३, लाडनूं " ५,६ सं. १९१६ मा० कृ०८, लाडनूं लाडनूं इन सातों ढालों में ३३ दोहे, ३८१ गाथा, तथा २२ पद्य-परिमाण वार्तिका है। इसका समग्र ग्रन्थाग्र ४३६ है। ९. लघुरास जयाचार्य की कृतियों में 'लधुरास' का अपना स्वतन्त्र महत्त्व है। तत्कालीन ६ बहिर्भूत साधुओं (१ चतुर्भुजजी, २ कपूरजी, ३ जीवोजी, ४ संतोजी, ५ छोगजी, ६किस्तूरजी) से संबंधित विभिन्न तथ्यों का सुन्दर विश्लेषण इस कृति में हुआ है। कुछ तथ्य तो इतने समीचीन चित्रित हुए हैं कि आज भी उनकी पुनरावृत्ति तदनुरूप देखी जाती है। इस रास की मुख्य ढाल एक ही है। बीच में आचार्य भिक्षु और मुनि हंसराजजी की ढालों को अन्तरढाल के रूप में उद्धृत किया गया है। इस रास में १४४० पद्य हैं। प्रारंभिक १२२६ पद्यों की रचना वि० सं० १९२३ बैशाख शुक्ला ८ के दिन हुई है। स्थान का नाम नहीं दिया गया है। जयाचार्य ने अपने सहज शब्दों में संघ से बहिर्भूत व्यक्तियों की विचारधारा का जो चित्र खींचा है, वह वास्तव में ही अनूठा और मनोवैज्ञानिक है। बहिर्भूत साधु पग-पग पर स्खलित होता है। उसकी मानसिक और वाचिक वृत्तियां कितनी अस्थिर होती है ? समय-समय पर वह किस प्रकार आत्मवञ्चना और वाबिडम्बना करता है? अपने स्वार्थों की अप्राप्ति में अधीर होकर वह किस प्रकार संघ और शास्ता पर झूठे दोषारोपण करता है ? छिपे-छिपे संघ के साधुओं में मनोभेद पैदा करने के लिए वह कितनी कुटिल प्रवंचनाएं रचता है ? आदि समस्त तथ्यों का सूक्ष्मतापूर्वक यथार्थ विश्लेषण प्रस्तुत कृति में किया गया है। १०. टाळोकरों की ढाळ ___ आचार्य श्री भिक्षु ने संघ के साधु-साध्वियों के लिए जहां व्यवस्था की है, वहां उन्होंने संघ से बहिष्कृत या बहिर्भूत व्यक्तियों के लिए भी कई मर्यादाएं और कुछ मौलिक सुझाव प्रस्तुत किए हैं। साधारणतया देखा जाता है कि गण से बहिष्कृत व्यक्ति अपने दोषों को न देखकर संघ में ही दोष निकालने का प्रयास करता है। पर क्या नींव के बिना भी कभी मकान खडा रह सकता है ? वातुल आते समय कितना तेज आता है पर उसकी यह स्थिति कितनी देर रहती है, यह सभी जानते हैं। प्रस्तुत कृति में टालोकरों से संबंधित मर्यादाओं का विश्लेषण तथा उनके द्वारा
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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