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________________ से सहज ही सम्पन्न किया जा सकता है। हाजरी का प्रारम्भ संवत् १९१० पो० कृ० ९ शनिवार के दिन बड़ी रावलिया (राज०) में हुआ था और उस समय प्रतिदिन के क्रम से ये सभी हाजरियां एक महीने में सुनाई जाती थीं। इनका ग्रन्थाग्र ३२८७ है। ८. परम्परा री जोड़ किसी भी व्यवस्था को लम्बे काल एक व्यवस्थित रखने के लिए विधि-विधानों की अत्यन्त अपेक्षा रहती है। उनके बिना सामुदायिक जीवन में पग-पग पर अव्यवस्था का खतरा बना रहता है। इस खतरे से बचने के लिए ही भगवान महावीर से लेकर अब तक अनेक नियमों की संरचना हुई है। छेद सूत्र को इसी कोटि में ले सकते हैं । सामयिक परिस्थितियों के संदर्भ में कई नए प्रश्न भी उठ खड़े होते हैं, जिनके संबंध में आगम मौन है। वैसी स्थिति में स्पष्ट उल्लेख न होने से उन्हें सुलझाने के लिए पूर्व परम्परा की ओर झांकना पड़ता है। प्रस्तुत कृति ऐसे ही अनेक प्रश्नों का समुचित समाधान प्रस्तुत करती है। इसका संक्षिप्त विषयानुक्रम इस प्रकार है। कृति के प्रारंभ में जीत व्यवहार अर्थात् आचार्य द्वारा निर्णीत परम्परा को पुष्ट करते हुए स्थानांग व्यवहार तथा भगवती सूत्र के प्रकरणों को उदधत कर स्पष्ट किया है। बुद्धिमान आचार्य पांच व्यवहारों के आधार पर शुद्ध नीति से जो निर्देश देते हैं उसके अनुसार प्रवृत्ति करने वाला श्रमण आराधक होता है। ढाल १ नित्यपिंड आहार कैसी स्थिति में कब लिया जा सकता है? एक घर में अनेक बार गोचरी की जा सकती है। ढाल २ शास्त्रीय अनेक बातों का सप्रमाण स्पष्टीकरण। ढाल ३ टालोकर रूपचन्दजी और अखेरामजी द्वारा उठाए गए १५९ बोलों में से कुछ बोलों का स्पष्टीकरण। ढाल ४ तथा ५ गोचरी संबंधी कल्पाकल्प व्यवस्थाओं का निराकरण। ढाल ६ दायक (दाता) और देय (वस्तु) का शुद्धाशुद्धि विवेक। ढाल ७ साधु कौन-कौन सी वस्तु अपने हाथ से ले सकता है और कौन-कौन सी नहीं ले सकता? आदि आदि। रचना संवत् तथा पद्य-परिमाण। ढाल १ सं० १९१४ बै० कृ० ९, लाडनूं " २ सं० १९१५ मृ० कृ०८ " ३ सं० १९१५ मृ० शु०३
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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