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________________ तिण सूं गुण रूप वार्ता करणी, पिण अवगुण रूप लेहर में बोलण रा अनंता सिद्धां री साख करनै सर्व साध -साधव्यां रै पचखांण छै। उतरती वार्ता कोई कहै तथा मन सहित सुणै ते पिण भाग-हीण, तथा सुणी आचार्य नै न कहै ते पिण भाग-हीण, या तीनां ने तीर्थंकर नो चोर कहणो, हरामखोर कहणो, तीन धिरकार देणी। ए सर्व सुणाय ने आचार्य गत दिवस वार्ता सर्व साध साधवीयां नै पूछे-कोई कषाय रे वश शब्द बोल्यो तथा हास्य रे वश बोल्यो तथा उतरतो शब्द बोल्यो ए सर्व जाण अजाण शब्द बोल्यो तथा सुण्यो ते सर्व कहणो। तथा मार्ग चालतां, पडिलेहण करतां और ही अनेक गणी पूछै तो जथतथ अरज करणी। आचार गोचर में सावचेत रहिणो। भीखणजी स्वामी रा लिखत ऊपर दृष्ट तीखी राखणी। पासत्था उसनां कुसीळिया अपछंदा टाळोकर नी संगति न करणी। कर्म जोगे टोळा थी टळे अथवा कठणाई में चालणी नहीं आवै, आहारादिक रो ळोळपी घणो अथवा चोकड़ी रे वस थइ आग्या पालणी आपरो छांदो रुधंणो ए दोरो जद वक्र बुद्धि होय गण बारै नीकळे, अवगुणवाद घणा बोलै, पेटभराई वास्ते अनेक ऊंधी-ऊंधी परुपणा करै, लोकां नै बहकावा नै अजोग-अजोग निंद्या करै, केइ बेपत्ता अकल विनां एकला लाज छोड़ी फिरता फिरै तिणने श्री भीखणजी स्वामी एकल रा चोढळ्या में निखेद्यो छै। ते गाथा दूहा १ आरम्भजीवी गृहस्थी, फिरे त्यांरी ने श्राय । अन्य तीर्थी पासत्थादिक, ते पिण तेहवा थाय ।। २ केइ वेरागै घर छोड़ने, राचै विषै रस रंग। राग द्वेष व्याकुल थका, करै व्रत नो भंग।। ३ रित पामै पाप कर्म में; सावज सरणो मांन। गण छोड़ी हुवै एकला, कूड़ कपट री खांन।। ४ न्यात लजावै पाछली, बले भेष लजावणहार। एहवा मानव फिरै एकला, धिग त्यारों जमवार।। ५ घणां में रहै सकै नहीं, ते एकलड़ा थाय । ___ कुण कुण दोष तिण में कह्या,ते सुणज्यो चित्त ल्याय॥ १ 'आप छार्दै फिरै छै जे एकला, ते जिन मारग में नहीं रे भला। साध श्रावक धर्म थकी टळिया,संसार समुद्र माहै कळिया।।धुपदं ।। २. लय-समर्मी मन हरष। तीजी हाजरी : २०३
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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