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२ एकलो देखनै लोग पूछा करै, घणो क्रोध करे त्यासू रे लड़े।
केई वंदे नहीं जब मान वहै, करड़ा वचन तिण नै रे कहै॥ कपटाई घणीं छै एकल तणी, सूत्र में भाखी त्रिभुवन धणीं।
बले लोभ घणो छै बोहलपणै, श्री वीर कह्यो छै एकल तणों। ४ बहु आरंभ नै विषै रक्त घणो, संचो करे वज्र पाप तणो।
नट नी परै अर्थी भोग तणों, बहु भेख धरै मांडै निधपणो।। ___ घणै प्रकारे धुरतपणो, संके नहीं करतो कर्म रिणो।
अध्यवसाय वर्ते मन रा अति ही घणा, सठ पणै छै एकल तणा॥ बहु कोहे माणे माया लोभ पणो, रडे नडे सढ़े संकल्प घणो।
ए आठ अवगुण घट में वर्ती, हिंसादिक आश्रव नो अर्थी ।। ७ बले साधुनो लिंग लिया रहै, कर्मे आछायो एम कहै।
हूं सुध चारित्रियो आचारी, सतरे भेदै संजमधारी॥ रखै कोई देखै अकारज करतो, आजीवका अर्थी रहे डरतो।
अज्ञान प्रमाद सुं दोष भस्यो, निरंतर मूढ मोह्यो कुपंथ पड्यो। जिण धर्म न जाणै आप छांदे रह्या, त्यांने कर्म बांधण नै पंडित कह्या
पाप करण सूं अळगा रहै नहीं, तिणनै संसार में भ्रमण कही। १० आचारंग पंचमै अधेने आख्यो, पहळे उदेसै जिण भाख्यो।
ए चरित कह्या छै एकळ तणां, इण अनुसारे तो अति ही घणां॥ ११ एहवा अपछंदा अवनीत, त्यां छोड़ी धर्म तणी रीत।
निरलज भागळ विपरीत, किम आवै त्यांरी परतीत।। उसन्नादिक पांचू तणी, संगति बरजी छै त्रिभुवन धणी।
ए मोख मार्ग ना छै फंदा, एहवा छै जैन तणां जिंदा॥ १३ त्यां छोड़ी लोकिक तणी लजिया, संका नहीं आणै करता कजिया।
दोषण काढ्यां तो तपता रहै, ते आया परिसा केम सहै।
इम इत्यादिक एकल नै घणो निषेध्यो, ते भणी तेहनी संगत न करणी। तथा पैंताळीसा रा लिखत में कह्यो-टोळा माहे कदा कर्म जोग टोळा बारै पड़े तो टोळा रा साध साधविया रा अंसमात्र अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै। यारी अंसमात्र संका पहै आसता उतरै ज्यू बोलण रा त्याग छै। टोळा मां सू फारने साथ ले जावण रा त्याग छै। माहोमां मन फाटै ज्यूं बोलण रा त्याग छै। उ आवै तो ही ले जावा रा त्याग छै। टोळा मांहे नै बारै नीकळ्या पिण अंसमात्र अवगुण बोलण रा त्याग छै।
इम पैंताळीसा रा लिखत में कह्यो। ते भणी सासण री गुणोत्कीर्तन बात करणी। भागहीण हुवै सो उतरती बात करै, भागहीण सुणै, सुणी आचार्य नै न कहै ते पिण भागहीण। २०४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था