SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तथा पैंतालीसा रा लिखत में एहवो कह्यो उणनै साधु किम जाणिये जो एकलो हैरी सरधा हुवै, इसड़ी सरधा धारनै टोळा मांहि बैठो रहे, म्हारी इच्छा आवसी तो मांहे रहिसूं, म्हारी इच्छा आवसी जब एकलो हुसूं, इसड़ी सरधा सूं टोळा मार तो निश्चै असाध छै । साधपणो सरधै तो पहिला गुणठाणा रो धणी छै । दगाबाजी ठागा सूं मां रहै तिनै मांहे राखे जाणने, त्यांनै पिण महादोष छै। कदाच टोळा मांहे दोष जाणै तो टोळा मांहे रहिणो नहीं । एकलो होय नैं संलेखणा करणी, बेगो आत्मा रो सुधारो करणो, आ सरधा हुवै टोळा मांहे राखणो, गाळागोळो करनै रहै तो राखणो नहीं, उत्तर देणो, बारे काढ़ देणो, पछै आळ दे नीकळै तो किसा काम रो । तथा चोतसा रा वर्ष आय रै मर्यादा बांधी तिण में कह्यो - " ग्रहस्थ आगै टोळा मेरा साध आय री निंद्या करे तिण नै घणी अजोग जाणणी । तिणने एक मास पांचूं विगै रा त्याग, जिती वार करै जिता मासं पांचूं विगै रा त्याग तथा आंसू कादै तथा तुंकारादिक करड़ा काठा वचन से प्राछित कह्यो ते पिण सुद्ध पाळणो । तथा पैंतालीसा रा लिखत में एहवो कह्यो - "बले कोई आचार्य मर्यादा बान्धी याद आवै ते कबूल छै । तथा पचासा रा लिखत में कह्यो बले कोई करली मर्यादा बांधे तिण में नां कहिणो नहीं। आचारनीं संका पड़यां थी बले कोई याद आवै ते लिखां ते पिण सर्व कबूल छै । ए मर्यादा लोपण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै पचखांण छै । जिरा परिणाम चौखा हुवै, सूंस पाळण रा परिणाम हुवै ते आरे होयज्यो । सरमासरमी रो काम छै नहीं । तथा गुणसठा रा वर्ष रा लिखत में कह्यो - " टोळा सूं न्यारो हुवै तो इण सरधा रा भाई बाई हुवे तिहां रहिणों नहीं। एक बाई भाई हुवै तिहां रहिणो नहीं । वाटै बहितो एक रात कारण पड़ियां रहै तो पांचू विगै नैं सूंखड़ी खावा रा त्याग छै । अनन्ता सिद्धां री साख करने छै । " तथा पचासा रा वर्ष रा लिखत में कह्यो जिण रो मन रजामंद हुवै चोखी तरह साधपणो पलतो जांणों तो टोळा मांहे रहिणो । आप में अथवा पेलां में साधपणो जाणनै रहिणो । ठांगा सूं मांहे रहिवा रा अनंत सिद्धां री साख सूं पचखांण छै- एहवो पचासा रा लिखत में कह्यो । इत्यादिक अनेक भीखणजी स्वामी मर्यादा बान्धी, बले कोई आचार्य मर्यादा बान्धे ते सर्व साध - साधव्या रै लोपवा रा त्याग छै जावजीव लगे। तथा श्रावक क कोई अवनीत साधु श्रावक उतरती बात अवगुण रूप करै तो वनीत श्रावक तिण अवनीत साधु श्रावक ने निखेद देवे, अने तिण बात कही ते आचार्य नै सर्व सुणाय देवै ते सुवनीत रा लखण छै । पैंताळीसा रा ळिखत में अंस अवगुण बोलण रा त्याग चाल्या छै, ते भणी आचार्यादिक सर्व साध - साधवियां रा अवगुणवाद बोलण रा त्याग छै । तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था २०२
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy