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जी हाजरी
सर्व साधु साधवी पंच सुमति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखण्ड अराधवा । आहार पाणी लेण ते की पूरी ताय तपाय नै लेणो । पकी चोकस निगे करनै देवाळ नै देणो, लेवाळ नै लेणो । तथा आहार करतां पकी जेणा करी बोलणो । उंधो हाथ न देणो, -तिरछो हाथ न देणो, पुणचो न देणो, अलगो हाथ न राखणो । पड़िलेहण करता, मा चालतां न बोळणों । आहार करतां, अजेणां सूं बोलतां, पड़िलेहण करतां बोलतां, मारग चालतां बोलतां यां तीनां रो साचो तथा झूठो खूंचणो कादै तो समभाव सं अंगीकार करणो पण बीजो शब्द न बोलणो ।
तथा भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धांत देख विविध मर्याद बांधी, ते पचासा रा लिखत में कह्यो - "किण ही साध आय में दोष देखै तो ततकाळ धणी नै कहिणो, अथवा गुरां ने कहिणो, पिण औरां नै न कहिणो । ”
इमहिज बावनां रा लिखत में कह्यो- तथा इमहिज वनीत अवनीत री चोपी में ह्यो । तथा बले साध सिखावणी ढाळ में तथा रास में तथा पचासा रा लिखत में घणा दिन आड़ा घालने दोष बतावै तिण नै निषेध्यो छै ।
तथा पैंतालीसा रा लिखत में एहवो कह्यो - टोळां मांहे कदाच कर्म जोगै टोळा बारै परै तो टोळा रा साध साधवियां रा अंस मात्र ओगुण बोलण रा त्याग छै । तथा पचासा रा लिखत में साधां रै मर्यादा बांधी तिण में एहवो कह्यो - किण: 'खेत्र काचो बताया, कि ही ने कपड़ादिक मोटो दीधां इत्यादिक कारणे कषाय उठै जद गुरुवादिक
निंद्याकरण रा, अवरणवाद बोलण रा, एक-एक आगे बोलण रा, मांहोमा मिलनै जिलो बांधण रा त्याग छै । अनंता सिद्धां री आण छै। गुरुवादिक आगै भेळो तो आपरै मुतळब रहै, पछै आहारादिक थोड़ा घणा रो, कपड़ादिक रो नाम लेई अवरणवाद बोलण रा त्याग छै, एहवो पचासा रा लिखत में कह्यो ते मर्यादा सुध पाळणी ।
तथा बावना रा लिखत में आय रै मर्यादा बांधी तिण में एहवो कह्यो- किण ने खेत्र आछो बताया राग द्वेष करने बात चलावण रा त्याग छै । खेत्र आश्री, कपड़ा श्री, आहार पाणी आश्री ओषधादिक आश्री बात चलावण रा त्याग छै। चौमासो क तिहा चौमास करणो । शेषकाळ बड़ा कहे तिंहा विचरणो । ” तथा किण ही आय दोष जाणनै सेव्यो हुवै तो पानां में लिख्यां बिना तरकारी खाणी नहीं | कदाच कारण पड़यां न लिखै तो और आर्य्या नै कहिणो । सायद करने पछै पिण बेगो लिखो, पिण बिना लिख्या रहिणो नहीं । आय गुरां ने मुंडा सूं कहिणो नहीं। मांहो मां अजोग भाषा बोलणी नहीं - एहवो बावना रा लिखत में कह्यो ते मर्यादा सुद्ध पाळणी ।
तीजी हाजरी : २०१