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________________ ४ साधां ने आय वन्दना करे, साधवियां नै न वांदे रुड़ी रीत। त्यांने श्रावक श्रावका म जाण जो, ते ऊधमती अवनीत ।। इत्यादिक अनेक ठांमै दोष रा धणी ने तथा गुरां ने कहणो कह्यो, पिण औरां ने न कहिणो, एहवो कह्यो। तथा घणा दिन पछै कहणो रास में तथा साध सीखावणी ढ़ाळ में तथा दुहा में घणा दिनां पछे दोष कहै तिण नै अपछंदो कह्यो, निर्लज कह्यो, नागङो कह्यो, मर्यादा नो लोपणहार कह्यो, कषाय दुष्ट आत्मा रो धणी कह्यो, तथा अनेक लिखत में बरज्यो। तथा पेंताळीसा रा लिखत में इम कह्यो-"टोळा मांहि छतां कदाच कर्म जोगे टोळा बारे पड़े तो टोळा रा साध साधवियां रा अंसमात्र अवगुण बोलण रां त्याग छै। यारी अंसमात्र शंका पड़े ज्यू ने आसता ऊतरै ज्यूं बोलण रा त्याग छै। टोळां मां सूं फाड़ने साथ लेजावण रा त्याग छै। ओ आवै तो ही ळे जावण रा त्याग छै। टोळा मांहि नै बारै नीकळ्यां पिण अवगुण बोलण रा त्याग छै। मांहो मां मन फाटै ज्यूं बोलण रा त्याग छै। ए सर्व पेंताळीसा रा लिखत में कह्यो। टोळा माहै छतां तथा टोळा बारै पड़े तो पिण साधु-साधवियां रा अंसमात्र अवगुण बोलण रा त्याग छै। एहवो भीखणजी स्वामी कह्यो ते मर्यादा सुध पाळणी। तथा सम्वत् १८५० रा वर्ष भीखणजी स्वामी मर्यादा बांधी तिण में एहवो कह्यो-एक दोष सूं बीजो दोष भेळो करै ते अन्याई छै, जिण रा परिणाम मेला होसी ते साध-साधवियां रा छिद्र जोय-जोय नै भेळा करसी, ते तो भारीकर्मी जीवां रा काम छै। डाहो सरल आत्मा रो धणी होसी ते तो इम केहसी- कोई ग्रहस्थ साध-साधवियां रो स्वभाव प्रकृति अथवा दोष कोई कहि बतावे तिण नै यूं कहिणो-"मौने क्यांनै कहो कै तो धणी नै कहो, कै स्वामीजी नै कहो ज्यं यांने प्राछित देई नै शद्ध करै नहीं कैहसो तो थे पिण दोषीला गरां रा सेवणहार छो। स्वामीजी नै न कहिसो तो थांमै पिण बांक छै। थे म्हांनै कयां काई होवै इम कहीनै न्यारो हुवै पिण आप बैदां में क्यांनै पहै। पेला रा दोष धारने भेळा करै ते तो मृषावादी अन्याई छै। किण ही नै खेत्र काचो बतायां, किण नै कपड़ादिक मोटों दीधां इत्यादिक कारणै कषाय उठै जद गुरुवादिक री निंद्या करण रा नै अवरणवाद बोलण रा नै एकएक आगे बोलण रा माहोमां मिलने जिलों बांधण रा त्याग छै। अनंता सिद्धां री आण छै। गुरवादिक आगै भेळो आपरै मतळब रहे पछै आहारादिक थोडा घणा रो. कपडादिक रो नाम लेइने अवरणवाद बोलण रा त्याग छै। ए सर्व पचासा रा लिखतमें भीखणजी स्वामी कह्यो-ते मर्यादा सर्व सुध पाळणी एहवो कह्यो। तथा बावना रा लिखत में भीखणजी स्वामी आर्यां रे मर्यादा बांधी तिण में कह्यो-किणही नै खेत्र आछो बतायां रागद्वेष करनै बात चलावण रा त्याग छै। खेत्र आश्री बात चलावण रा त्याग छै।चोमासो कहै तिहां चोमासो करणो। शेषे काळ बड़ा कहै तिहां विचरणो। किण ही साध आल् दोष जाणनै सेव्यो हुवै ते पाना में लिख्यां बिना विगै तरकारी खाणी नहीं। कदाच कारण पड्यां न लिखै तो और आ· नै दूजी हाजरी : १९९
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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