SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूजी हाजरी पांच सुमति तीन गुप्ति पंच महाव्रत सुध पाळणा। ईर्या भाषा एषणा में सावचेत रैहणो। आहार पाणी लेणो ते पकी पूछा करी लेणो। निर्दोष पिण घणी हठ मनुहार सूं लेणो। देवाळ नो मन घणो तीखो रहै ज्यूं लेवै ते चतुर, दातार नो अभिप्राय देखै नहीं ते मूरख, वस्त्रादिक लेतां मेलतां पूजतां परठतां उपयोग तीखो राखणो। इमहिज गुप्ति महाव्रत में सावचेत रैहणो। गुरांरी आज्ञा ऊपर दृष्टि तीखी राखणी। आज्ञा अखंड अराधै ते विनीत। तथा भीखणजी स्वामी री मर्याद शुद्ध पाळणी। पंताळीसा रै वर्ष मर्याद बांधी “आचार रो साधा रो सूतर रो अथवा कल्प रो बोळ री समझ न पड़े तो गुरु तथा भणणहार साधु कहै ते मांन लेणो कह्यो, न वेसै तो केवळी नै भळावणो कह्यो। इमहिज सम्वत् १८५० तथा ५९ रा लिखत में कह्यो-“सरधा आचार रो बोल बड़ा सूं चरचणो, बड़ा कहै ते मान लेणो, पिण ओरां सूं चरच नै शंका घाळणी नहीं" तथा पेंताळीसा रा लिखत में कह्यो-“साधां रा मन भांगनै आपरै जिलै करै ते तो महाभारीकर्मों, विश्वासघाती जाणवो। इसड़ी घातपावड़ी करै ते तो अनन्त संसार नी साई छै। इण मर्यादा प्रमाणे नहीं चालणी आवै तिण नै संलेखणा करणी सिरै छै एहवो कह्यो।' तथा और लिखत में रास में पिण जिलो बांधणो निखेध्यो छै। ते मिल-२ नै जिलो बांधण रा त्याग छै। तथा बावना रा ळिखत में कह्यो-“किण ही साधु आर्यां माहै दोष देखै तो तत्काळ धणी नै केहणो, कै गुरांनै केहणो, पिण और ने न कहिणों। तथा पचासा रा लिखत में कह्यो-"किण ही साधु आर्यों में दोष देखै तो तत्काळ धणी नै केहणो, अथवा गुरु नै केहणो, पिण और नै न केहणो। घणा दिन आडा घालनै दोष बतावै तो प्राछित रो धणी ओहिज छै। प्राछित रा धणी नै याद आवै तो प्राछित उण नै पिण लेणो, नहीं लेवै तो उण नै मुसकल छै," एहवो पचासा रा लिखत में कह्यो। तथा वनीत अवनीत री चोपी में पिण एहवी गाथा कही छै। १ दोष देखै किण ही साध में, तो कह देणो तिण नै एकंतो रे। ___ जो उ मानै नहीं तो कहिणो गुरु कनै, ते श्रावक छै बुधिवंतो रे॥ - सुवनीत श्रावक एहवा ।। २ प्राछित दिराय नै सुध करै, पिण न कहै अवरां पास। ते श्रावक गिरवा गंभीर छै, वीर बखाण्यां तास ।। ३ दोष रा धणीने तो कहै नहीं, उणरा गुरु नै पिण न कहै जाय। __ और लोंकां आगे बकतो फिरै, तिणरी परतीत किस विध आय॥ १. दाता। २. लय-चन्द्रगुप्त राजा सुणो। १९८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy