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________________ सरध नै फेर साधपणो लेवै तो ही पिण अठी रा साध-साधवियां री संका घालण रा त्याग छै । खोटा कहिण रा त्याग ज्यूं रा ज्यूं पाळणा छै । पछै यूं कहिण रा पिण त्याग छै 'म्है तो फेर साधपणो लीधो अबै म्हारैं आगला सूंस रो अटकाव कोइ नहीं' यूं कहिण रा पिण त्याग छै। किण ही साध आर्या नै पिण साध आय री आसता उतरै साध आर्यां री संका पड़ै ज्यूं असाधपणो सधै ज्यूं बोलण रा त्याग छै । अथ इहां पण अवगुण बोलण रा त्याग कराया ते पिण उत्तम जीव सुद्ध पाळे, किंचित मात्र लोपवा रा पचखांण छै। तथा बावना रा लिखत में आर्यों रै मर्यादा बांधी तिण में एहवो कह्यो - “किण ही आय जाणनै दोष सेव्यो हुवै ते पाना में लिख्या बिना विगै तरकारी खाणी हैं कदा कारण पड़िया न लिखै तो और आय ने कहणो सायद' करनै पछै पिण वेगो लिखणो, पिण लिख्या विना रहिणो नही, आयनै गुरां नै मूंढै सूं कहिणो नही, मांहोमां अजोग भाषा बोलणी नहीं, वो बावना रा लिखत में कह्यो, ते मर्यादा पिण । सुद्ध पाळणी । तथा सं० १८३४ रे वर्ष आर्यां रो लिखत कीयो तिण में पिण एहवो कह्यो - मांहो मांही आर्या आर्या नै तूंकारा दै, तिण नै पांच दिन पाचूं विगै रा त्याग । जितरा तूंकारा काढै जितरा पांच- पांच दिन रा विगै रा त्याग | तूं झूठा बोली छै, . एहवा वचन काढै जितरा पांच-पांच दिन विगै रा त्याग । प्रायछित आयो तिण रो मोसो बोलै जितरा पांच-पांच दिन विगै रा त्याग। गृहस्थ आगै टोळां रा साध-साधविया री निंदा करै तिण नै घणी अजोग जाणणी, तिण नै एक मास पांचूं विगै रा त्याग, जितरी वार करे जितरा मास पांगै रा त्याग, आर्या री मांहोंमांही री बाता करायनै उण रो परतो वचन उण कनै कहै उण रो मन भांगै जिसो कहीनै मन भांगे तो १५ दिन पांचूं विगै रा त्याग, मांहो मांही कहै तूं सूंसां भागळ छै, एहवो कहै तिण रै १५ दिन रा त्याग छै । जितरी वार कहै जितरा १५ दिन रा त्याग छै। आंसू काढै जितरी वार १० दिन विगै रा त्याग छै, कै पनरै दिन माहै बेलो करणो । इत्यादिक करड़ो काठो वचन कहै तिण नै यथा योग प्रायछित छै । ए विगै रा त्याग छै ते उण री इच्छा आवै जद साधां सूं भेळा हुवा पहिली टाळणा, जो नहीं टाळै तो बीजी आर्यां यूं कहण पावै नहीं तूं टाळीज, साधा नै कहि देणो साधां री इच्छा आवै तो द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भाव, जाणनै और दंड देसी अनै साधां री इच्छा आवसी तो विगै रा त्याग घणां करावसी बळे आर्या रे मांहोंमांही साधसाधवियां ने न कल्पै न शोभै लोकां नै अणगमता लागे । उण री जातादिक से खूंचणो काढणो । जिण भाषा रोपण साधां री इच्छा आवै जितरा दिन विगै रो त्याग देवै ते कबूल करणो छै। अथ हां क्रोध रै वस 'तूंकारादि' करडाकाठा वचन रो आंसू काढै जिण रो गृहस्थ आगे निंदा करे त्यांरो अथवा तूं झूठा बोली तूं सूंसां री भागल, इत्यादिक सर्व रो प्रायछित साधु देवै ते लेणो को ते मरयाद लोपण रा सर्व आय रे त्याग छै । अनेक लिखत में भीखणजी स्वामी साध आर्यां रे मर्यादा बांधी ते पिण लोपणी नहीं । आचार्य री आज्ञा सूं चोमासो करणो शेषे काळ विच-रणो। आहार पाणी वस्त्र पात्र आदि सर्व आचार्य री आज्ञा सूं करणा । दिख्या देणी ते पि आज्ञा सूं देणी आज्ञा विना किंचितमात्र न करणो, एहवो कह्यो । तथा आज्ञा विना प्रर्वते अथवा दिख्या देवै तिण नै अवनीत कह्यो, तथा वनीत अवनीत री चोपी में अवनीत रा लखण ओळखाया १. साक्ष्य । गण विशुद्धिकरण बड़ी हाजरी : १९१
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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