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________________ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ओ छानो बिगड़यो थो घणा दिनो, पिण लोकां में न पड़यो उघाड़ । अवनीत सूं एकट कियां पछै परगट हुवो लोक मझार ॥ 2 में, तो कहि दै तिण नै एकंत । दोष देखै किण ही साध जो उ मानै नहीं तो कहिणो गुरु कनै, ते श्रावक छै बुद्धिवंत ॥ सुविनीत श्रावक एहवा । धुपदं ॥ न कहै औरां रे पास । वीर वखाण्या तास ॥ १९० प्रायश्चित दराय नै सुद्ध करै, पिण ते तो श्रावक गिरवा गम्भीर छै, उण रै मूंहढै तो दोस कहै नहीं, उणरा गुरु नै पिण न कहै जाय । और लोकां आगे कहतो फिरै, तिणरी परतीत किण विध आय ॥ बले साधां नै आय वंदणा करै, साधवियां नै न वादै रूड़ी रीत । त्यानैं श्रावक-श्राविका म जाणज्यो, ते तो मूढमती तिण श्री जिन धर्म न ओळख्यो, बले भणभण करै आपछंदै माठी मति ऊपजै, तिण नै लागो नहीं गुरु कान ॥ अवनीत ॥ अभिमान । दोष 1 अथ इहां पिण भीखणजी स्वामी को कोई अजनीत साधु वै तेहनें गुरु लोकां नै जतायो जन्म कदाग्री सुणै तो तिण नै जाय कहै । तथा बलि कह्यो - दोष देख्या धणी नै तथा गुरु नै तुरत कहिणो, पण अनेरा नै न कहणो । इम अनेक ठामै और नै कहणो वरज्यो छै, ते भणी तुरत तथा गुरुनै कहिणो, पिण और नै न कहिणो तथा घणा दिन आडा घालनै पिण न होमर्यादा सुध पाळणी । किंचित मात्र लोपणी नहीं। तथा बलि पचासा रा लिखत में एहवी मर्यादा बांधी - "सर्व साधां नै सुद्ध आचार पाळणों ने मांहोमां गाढो हेत राखणो । तिण ऊपर मरजादा बांधी। कोइ टोळा रा साध- साधवियां से साधपणो सरधो आप मांहि साधपणो सरधो तिको टोळा मांहि रहिज्यो । कोई कपट दगा सूं साधां भेळो मांहे रहै तिण नै अनंता सिद्धां री आण छै। पांचू पदां री आण छै । साध नाम धराय नै असाधां भेळो रह्या अनंत संसार बधै छै, जिण रा चोखा परिणाम हुवै ते इतरी परतीत उपजावो । किण ही साध-साधवी रा ओगुण बोळ किण ही नै फाड़नै मन भांगनै खोटा सरधावण रा त्याग छै । किण सूं इ साधपणो पळतो दीसै नहीं। अथवा स्वभाव किण सूं ही मिलतो दीसै नही । अथवा कषाय धेठो जाणनै कोइ कनै न राखै। अथवा खेतर आछो न बताया अथवा कपड़ादिक नै कारण । अथवा अजोग जाणनै और साधु गण सूं दूरो करै । अथवा आपनै गण सूं दूरो करतो जाणनै इत्यादिक अनेक कारण ऊपनै टोळा सूं न्यारो पड़ै तो किण ही साध - साधवियां रा ओगुण बोळण रा, हुंतो अणहुतो खूंचणो काढण रा त्याग छै । रहिसै-रहिसै लोकां रै संका घाळनै आसता उतारण रा त्याग छै। कदा कर्म जोगे अथवा क्रोध वस साधा नै साधवियां नै सर्व टोळा नै असाध पर आप में पिण असाधपणो तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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