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________________ साधवियां रा छिद्र जोय-जोय नै भेळा करसी। ते तो भारीकर्मी जीवां रा काम छै। डाहो सरल आत्मा नो धणी होसी ते तो इम कहसी-कोइ गृहस्थ साध-साधवियां रो स्वभाव प्रकृति अथवा दोष कहि बतावै, तिण नै यूं कहिणो-"मोनै क्यांनै कहो, कहो तो धणी नै कहो, के स्वामीजी ने कहो, ज्यूं यांनै प्रायश्चित देइ नै सुद्ध करै, नहि कहिसो तो थे पिण दोषीला गरुना सेवणहार छो। स्वामीजी नै न कहिसो तो थामें पिण बांक छै। थे म्हांनै कह्यां कांइ हुवै।" यूं कहि नै न्यारो हुवै पिण आप वैहिदा' मांहि क्यांनै पड़े। पेलै रा दोष धार नै भेळा करै ते तो एकंत मृषावादी अन्याइ छै। किण ही नै खेत्र काचो बताया, किण ही नै कपड़ादिक मोटो दीधां, इत्याधिक कारणै कषाय उठे, जद गुरुवादिक री निंद्या करण रा, अवर्णवाद बोलण रा, एक-एक आगै बोलण रा, मांहा-मांही मिलनै जिलो बांधण रा त्याग छै। अनंता सिद्धां री आण छै। गुरुवादिक आगै भेळो आपरै मुतळब रहे। पछै आहारादिक थोड़ा घणा रो कपड़ादिक रो नाम लेइ नै अवर्णवाद बोलण रा त्याग छै।" ए सर्व मर्यादा पचासा रा लिखत में भीखणजी स्वामी बांधी ते सर्व शद्ध पाळणी। तथा तिणहिज लिखत में एहवो कह्यो-"किण ही साधु साधवियां में दोष देखै तो तत्काल धणी ने कहिणो अथवा गुरां कहिणो पिण ओरां नैं न कहिणो । घणा दिन आडा घाल नै दोष बतावै तो प्रायश्चित रो धणी ऊहिज छै। प्रायश्चित रा धणी नै याद आवै तो प्रायछित उण नै पिण लेणो, नहि लेवै तो उण नै मुसकिळ छै।' ए पिण पचासा रा लिखत में और नै आगै उतरती दोष री बात करणी तथा घणा दिना पछै कहिणी बरजी छै। उतरती बात पर पूलै कहै तिण नै निषध्यो छै। तथा पैंतालीसा रा लिखत में एहवो कह्यो-"जे कोइ आचार रो सरधा रो सूत्र रो अथवा कल्प रा बोल री समझ न पड़े तो गुरु तथा भणणहार साधु कहै ते मानणो। नहि तो केवळी नै भोळावणो पिण और साधां रै संका घाल नै मन भांगणो नहीं" तथा पचासा रा लिखित में पिण एहवो कह्यो छै-“कोइ सरधा रो आचार रो नवो बोल नीकळे, तो बडा सूं चरचणो, पिण औरां सूं चरचणो नहीं, औरां सूं चरच नै औरां रै संका घालणी नहीं। बड़ा जाब देवै आप रै हियै बैसै तो मान लेणो। नहीं बैसे नो केवळ्यां नै भोळावणो, पिण टोळा मांही भेद पाड़णो नहीं'। तथा गुणसठा रा बरस रा लिखत में पिण एहवो कह्यो छै-“किण ही नै दोष भ्यास जावै तो बुधवंत साधु री प्रतीत कर लेणी पिण खांच करणी नहीं" इम अनेक ठामें सरधा आचार रो बोल औरां सूं चरचणो वरज्यो, गुरु तथा बुधिवंत साधु कहै ते मानणो कह्यो, गुरां री प्रतीत राखणी कही। तथा मांहो मांही जिलो बांधणो पिण अनेक लिखत जोड़ में बरज्यो छै। १. झंझट। २.सामान्य। गण विशुद्धिकरण बड़ी हाजरी : १८३
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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