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पहली बड़ी हाजरी
संवत् १९९० पोस बदि ९ वार शनेश्चर बड़ी रावळिया में ऋषि जीतमल गण विशुद्धिकरण हाजरी नी स्थापना कीधी । तेहनी विध- सर्व साधु 'बडा लहुडाइ " सूं मुख आगलि पंक्तिबंध उभा राखी नै आचार्य एतला वचन त्यां साधु हाथ जोड उभा त्यांन सुणावैते लिखीयइ छ ।
"नमिऊण असुर- सुर-गरुल-भुयंग-परिवंदिए गए किलेसे । अरिहे सिद्धायरिया, उवज्झाया
सव्वसाहूय ।”
श्री वीर वर्द्धमान शासण में संवत् १८१७ भीखणजी स्वामी सिद्धान्त देखी सूत्र प्रमाणै श्रद्धा आचार प्रगट कीयो । नवी दीक्षा लीधी । परंपरा रीत मर्याद अनेक प्रकारे
| बत्तीसारै वरस आप आप रै चेलो न करणो ए मर्यादा बांधी। गण बारै नीकळै, अपछंदो' है, तिण री बात-अवगुण बोलै तिका मानणी नहीं । तिण नै साधु सरधो नहीं, इम कह्यो । तथा बलि ओर लिखत में पिण टोळा में रही तथा बारै नीकळी उतरती बात करणी वरजी छै । ते भणी शासण री बात गुणोत्कीर्तन रूप करणी । अने गुणोत्कीर्तन रूप वार्ता सांभळणी । उतरती बात न करणी । अनै उतरती बात मन सहित न सांभळणी । कोई शब्द कान में पड़े ते गुरां नै कही देणो । उतरती बात कहैं तथा सु तथा सुणी नै न कहै ते इण भव में च्यार तीर्थ में हेलवा जोग निंदवा जोग 'कष्ट' करवा जोग' परभव में उतकृष्ट अनंत संसार रुळ एहनी रहस्य ज्ञाता सूत्र में कही-सेलक' सरीखा अपछंदा नै तथा उज्झिया भोगवती - रा साथी नै तथा सूत्र में, छकाय में, पंच महाव्रत धारी साधु में संका राखै - तिण नै हेलवा निंदवा जोग को जाव उत्कृष्ट अनंत संसारी कह्यो । तथा ठाणांग ठा० ५ उ०२ अरिहंतादिक नी आशातना कियां दुर्लभबोधिपणों लहै, एहवो कह्यो । तथा दशवैकाळिक अ०९ “ अबोहि आसायण नत्थि मोखो” गुरुवादिक नीं आशातना ते मिथ्यात अबोधि नों कारण कह्यो, तेहथी मोक्ष न मिलै एकेन्द्रियादिक में जाय, एहवो कह्यो । ते माटे आचार्यादिक नां अवर्णवाद नो बोलणहार शासण री उतरती बात ना करणहार नै तीर्थंकर नो चोर कहिणो ।
तथा संवत् १८५० वरस भीखणजी स्वामी मर्याद बांधी तिण में कह्यो - "एक दोष सूं बीजो दोष भेळो करै ते अन्याइ छै । जिण रा परिणाम मेला होसी ते साध
१. दीक्षा-क्रम से ।
२. स्वच्छन्द ।
३. साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका ।
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४. अनादृत करने योग्य ।
५. णायाधम्मकहाओ - ६।७।२८, ३० ।
६. णायाधम्मकहाओ - १।५।१२५ ।
तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था