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________________ सैंतीसा रा वर्ष रास जोड्यो। तिण में जिलो बांधणो घणो निषेध्यो छै। तथा 'गुरु सूकावै तो उभो सूकुँ' इण में पिण जिलो बांधणो बरज्यो छै। किण ही नै गुरां री आज्ञा विना आपरो रागी करणो वरज्यो छै। तथा पैंताळीसा रा लिखित में पिण एहवो कह्यो-“साधां रा मन भांग नै आप-आप रै जिलै करे ते तो महा भारीकर्मो जाणवो, विसवासघाती जाणवो, इसडी 'घात-पावडी' करै ते तो अनंत संसार री साइ छ। इण मरजादा प्रमाणे चालणी आवै नाहि तिण नै संलेखणा मंडणो सिरै छै। धनै अणगार तो नव मास माहै आत्मा रो कल्याण कीधो ज्यूं इण नै पिण आत्मा रो सुधारो करणो, पिण अप्रतीकारियो काम करणो न छै। ए पैंताळीसा रा लिखत में जिला नै निषेध्यो। तथा पचासा रा लिखत में पिण एहवो कह्यो छै-"टोळा में भेद पाड़णो नहीं, मांहोमां जिलो बांधणो नहीं। तथा चंद्रभाण तिलोकचंद जी नो जिलो जाण नै टोळा बारै किया। एहवो सैंतालीसा रा लिखित में कह्यो-“तिलोकचंद नै चंद्रभाण नै विसवासघाती जाण्या। सुखांजी आश्री दगाबाजी करता जाण्यां, गुरुद्रोही जाण्या, टोळा मांही भेद रा पाड़णहार जाण्यां, धर्माचार्य अनै साध-साधवियां रा अवगुण रा बोलणहार जाण्यां। धर्माचार्य री खिष्टीरा करणहार जाण्यां। धर्माचार्य आदि देइ नै साध-साधवियां ऊपर मिथ्यात पडिवज्यो जाण्यां। धर्माचार्य आदि देइ साध-साधवियां रा छिद्रपेही छिद्र ना गवेषणहार जाण्या। उपसम्या कळह ना उदीरणहार जाण्यां, साधु-साधवियां आलोइ पड़िकमी नै सुद्ध हुआ त्यां बातां रा उदीरणहार जाण्या। साधु-साधवियां नै माहोमां कळह रा लगावणहार जाण्या। गुरु सूं सनमुख नै विमुख करतां जाण्यां। टोळा माहैं छान-छानै साध-साधवियां नै फार-फार नै आपणा करणा मांड्या जाण्या। गुरु सूं फटाय-फटाय नै आपणा करणा मांड्या जाण्या। धर्माचार्य आदि देइ नै साध-साधवियां रै माथै अनेक विध आळ रा देणहार जाण्यां। टोळा मांही रही नै दगाबाजी करता जाण्यां। मांहोमां मिलनै एको कीधो नैं एको करता जाण्यां। आप सूं मिलियो चालै तिण री पखपात करता जाण्यां। औरां नै निखेदणा मांड्या जाण्या। आमी सामी सापादुती कर-कर मांहोमां मन भांगणा मांड्यां जाण्या। बले अहंकारी नै अवनीत घणा जाण्या। अपछंदा पिण घणा जाण्यां। यांरा अनेक छळ छिद्र रो लखावै पङ्यो जाण्यो। जद टोळा बारै काढ्या। ए सर्व सैंताळीसा रा लिखत में कह्यो। इम जिलो जाण नैं अवनीत जाण नै बारै किया इम जिला नैं घणो निषेध्यो गुरु री आज्ञा विना जिलो बांधे आपणो रागी करै ते मोटो अवनीत अपछंदो च्यार तीर्थ में हेलवा निंदवा जोग छै। आज्ञा विना प्रवरते तिण नै भीखणजी स्वामी पचासा रा वरस रा लिखत में कह्यो-“साधा रै मरजादा बांधी छै तिण परमाणे सगळां रै त्याग छै। उवा मरजादा पिण उलंघण रा त्याग छै। जो १. धोखाबाजी। ३. उल्टी-सीधी। २. अवगणना। १८४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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