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________________ ४४ ४५ 8368 ४६ ४७ ४८ ४९ ५० ५१ ५२. ५३ 33989 ५४ १५४ ध्याय । सम समान । समभावै चित्त स्थाप मान हमारी सीखड़ी, सिव स्तुति निंदा नै अवर मित्र सर्व वल्लभ जन नै समचित वल्लभ आत्मा, ए सम पदना सुख पाय ॥ धरो, मानापमान परिहरो, आत्म निज मित्त वेरी जिसो, देखो जग दिल नांहि जान | खोल । अमोल || समतामृत इहभव परभव आकरा, कुण कुण कष्ट हवाल । सरणो श्री वीतराग नो, देख लियो जगख्याल || निश्चल मंदर जळनिधि, भू-सम 'जय' गंभीर । जळ - झूलियै, हेरो निज गुण हीर | दोहिलो, निज आतम उपदेस । अल्प दिवस में देखज्यो, सुर शिव सुख लहेस ॥ गर्भादिक बीच। भोगव्या, नरक अळगा करो, कामभोग महाकीच ॥ सोभता, द्विविध ए अवसर अति कष्टज करो, धर्म सुधार । पाळो निरतिचार ॥ जंजीर | सीर ॥ नै, ध्यान सुधारस कुण कुण कर्म हेतु साध श्रावक ना करणी करि कर्म खय जिन वाणी सुण जांणीयै, जग झूठो समभावे चित्त स्थापियां, सिवपुर घाळै धर्म कथा पर चित्त धरी, जोड़ी युक्ति धर्म कथा इम आखियै, निरमळ समत् अठार सत्यासीयै, माह धर्म कथा कहिवा भणी, जोङी बुद्ध नै सुद . तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था सवाई जणाय । न्याय ॥ मंगलवार ॥ .. मझार ।
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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