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________________ ३० ___ असुच तणो घर आखियो, ऊपर रूप अनूप। अंतर दुख घर आखियो, कामणी सुख भवकूप।। इम जांणी उत्तम नरां, राखसणी मति राच। सील सुधारस में रमो, प्रवर गुणागर पांच॥ व्याधि जरा वृद्ध वेदना, अनित्य अत्यंत असार। इम जाणी धर्म आदरै, सुर शिव पांमै सार ।। दुर्गंधिया सुख छोड़ि नै, देव हुवै दहदीप। अल्पकाळे आराधियै, मन इंद्री नै जीप। ऋद्धि करी रळियामणा, वारू - विविध विमाण। चारू चंचळ चाल नां, भळकै सुर तन भांण।। अपछर रूपे ओपती, विविध वणावत वेस। पंचइंद्री सुख परवरा, सुख विलसै सुविसेस।। चिंहु गति नै विषै संचरै, दाखै तेह दयाल। छः काया ना जीव छांट नै, खट काया प्रतिपाल। जिम बंधन लहै जीवड़ो, अळुझे इण संसार। राग द्वेष मोह रति करि, परखो विविध प्रकार ।। मूकै माया मोह थी, राग स्नेह मद मार। पांमै शिवगति पंचमी, ध्यान सुधारस धार।। राग द्वेष कर्म काम थी, कायर पांमै कलेस। समभावै चित्त स्थापियां, वारू सुख विशेस। काम भोग किंपाक सा, जाणी नै मोह पार। केइक समण सूरा कह्या, अप्रतिबंध विहार॥ कंदर्प शोक चित्त करी, दुख सागर भय दीठ। थिर चित्त संयम थापवो, नर भव पायो नीठ।। जिण विध पांमै जीवड़ो, वैराग्य रो प्रतिबोध। एहवी वांणी आखियै, सकळ कर्म तो सोध। राग स्नेह रति में रमै, उळझ्या जीव अजांण। पाप रूप फळ भोगवै, वीर तणी ए वांण ।। ४२ वचन समिति बगतर बण, धर खिम्या वर टोप। सील दया सझ सूरमा, अखिल गुणागर ओप।। ४३ राग द्वेष मोह जाळ नै, ध्यान एकंत आराध। आत्म निज गुण ओळखो, परहर पांच प्रमाद। उपदेशरी चौपी : ढा० १३ : १५३
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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