SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३ · माया वचने मानवी, कपट बढ़ावै माया गूढ़। ___ अलीक वचन मुख आखियै, महा मिथ्याती मूढ़। ___ कपट करी मूर्ख ठगै, पिंडत ठगवा पास। सरलपणे मृदु भाखवै, तिर्यंच हेतु तास । सरलपणै मृदु भाखवै, तिर्यंच हेतु तास। पंडित ठगवा पारखै, मोन करै खिण मात। वारू वचन विप्रतारियै, घोर तिर्यंच में घात। प्रकृति भद्रीक विनीत छै, सानुकोस दयावन्त। मच्छर भाव निहालवै, मनुष्य हुवै मतिमंत॥ राग सहित संजम रुचै, देश व्रत तप बाल। भाव बिना निर्जरा थकी, सुर गति पाय सुमाल ।। १८ पाप क्रूर नरक पांमियै, नरकावास निहाल। सीत उष्णादिक नीं सहै, वेदन महा विकराल ।। भूख त्रिखा बहु भोगवै, तप्त अनंती त्रास। वैतरणी ना दुख बड़ा, परमाधामी पास ।। सागर पल दुख त्यां सहै, कंदर्प रक्त करूर। हास कतूहळ हाम थी, पांमै दुख भरपूर।। २१ आंख मीच खोलै इतै, सुख नवि पाय सुहाल। दुख सुणतां तन धूजणी, दाखी दीनदयाल || महा सरीरी मानसी, पाप प्रसंग पामंत। तिर्यच दुख तिम वरणवै, तस थावर त्रासंत॥ मनुष्य भवे पिण मानवी, गर्भावास दुर्गंध। मळ मूत्र में मुरछियो, वीर्य रुद्र विलसंद। २४ मास सवा नव मानवी, दुख भुगत्या देखाय। भूल गयो जनम्यां पछै, विषय वल्लि लिपटाय॥ जिण थानक दुख में जुड्यो, तिण थानक मन जाय। निर्लज्ज धेठो निसरड़ो, अजुही लाज न आय।। रमणी तन रळियामणो, देखी राचै दीन। मळ मूत्र रो कोथळो, रुद्र असुचि मलीन।। २७ वमन पित्त वमती थकी, रुद्र वहै निस दीस। खेळ खंखार खरङीजतो, दुर्गंध विसवावीस॥ १५२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy