________________
४ आचार्य के प्रति शिष्यों का कर्तव्य ५ सुविनीत कौन? ६ मर्यादा-विवेक ७ साध्वियों को शिक्षा ८ साधुओं को शिक्षा ९ चारित्र रत्न की निर्मलता के लिए कुछ सूत्र १० अविनीत-सुविनीत परीक्षण ११ मर्यादा विवरण १२ परिचय (स्नेह राग) परिहरण शिक्षा १३ टालोकर (बहिर्भूत व्यक्ति) को शिक्षा १४ गुरु-शिष्य संवाद १५ सामूहिक शिक्षा मर्यादाओं के सन्दर्भ में १६ सुख, प्रकृति-परिवर्तन से १७ दलबन्दी के दुष्परिणाम १८, १९ सुविनीत प्रशंसा २० संविभाग के गुण-दोष २२ भिक्षु गण नन्दन-वन २३ टालोकर प्रकृति चित्रण २४, २५ संघ स्तवना २६ संघ में रहते हुए दोषों का प्रायश्चित्त कैसे और कितना? २७ उच्चता की परख २८ दुष्कर्मों का दुष्परिणाम २९ ईर्ष्या परिहारिणी शिक्षा ३० गुण प्रशंसा ३१ साधक प्रशंसा २३,३३ संयम शिक्षा
४. उपदेश री चौपी ___इस कृति में उपदेशात्मक विविध विषयों पर १५ ढालें हैं, जिनके २५३ पद्य हैं। अन्त में गीता के १२ वें अध्याय के कुछ श्लोकों का अनुवाद है। कई ढालों के अंत में नाम तथा रचना-संवत, स्थान आदि का उल्लेख नहीं है। इसमें कुछ पद्य इतने मार्मिक हैं कि सीधी चोट करते हैं प्रमादी व्यक्ति को चेतावनी के कुछ पद्यों का हार्द इस प्रकार है