SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'खोड़ीली प्रकृति' और 'चोखी प्रकृति' शीर्षक ढालों में सुविनीत और अविनीत व्यक्ति की प्रकृति का सूक्ष्म चित्रण इसका जीता-जागता उदाहरण है। इसी प्रकार चवदहवीं ढाल में गुरु-शिष्य संवाद के रूप में कुछ जीवन व्यवहारोपयोगी प्रश्नों को उभार कर जिस प्रकार समाधान प्रस्तुत किया गया है उसे पढ़कर हृदय गद्गद् हुए बिना नहीं रहता। सुविनीत और अविनीत के अन्तर को स्पष्ट करते हुए कुछ पद्य लिखे गए हैं वे नई उपमाओं से उपमित होकर इतने सरस बन गए हैं कि उन्हें पढ़ने में सूक्तियों का सा आनन्द आता है। नमूने के तौर पर तीन पद्य प्रस्तुत हैं काच भाजन अविनीतडो, कहो चोटां खमै केम। सहै चोटां तो वनीत ही, के हीरा के हेम। (ढाळ १९ गा० ७) कांच के बर्तन पर कोई चोट लगाए तो वह सहन नहीं कर सकता, फूट जाता है। किन्तु स्वर्ण और हीरा चोटें खाकर दुगुनी चमक के साथ सामने आता है। इसी प्रकार सद्गुरु की शिक्षा रूपी चोट से अविनीत दुःख पाता है और सुविनीत मुस्कराता है। अवनीत गोळो मैण नों, तप्त गळे तत्काळ। सुविनीत गोळौ गार नों, ज्यूं धमैं ज्यूं लाल।। (ढाळ १९ गा० ८) मोम का गोला अग्नि का ताप लगते ही पिघल जाता है किन्तु मिट्टी के गोले को जितना अधिक ताप लगता है उतना ही मजबूत होता है। यही स्थिति अविनीत और सुविनीत की है। अविनीत वृक्ष एरंडियो, अस्थिर ते करै कोप। सुविनीत कल्पतरु समौ, विनय नों वगतर टोप॥ (ढाळ १९ गा० १९) अविनीत एरंड वृक्ष की तरह थोड़ा सा हवा का झोंका लगते ही अस्थिर हो जाता है किन्तु विनयी सुविनीत कल्पवृक्ष की तरह अडिग एवं मनमोहक होता है। इसमें ३२ ढालें हैं निजमें ७१५ पद्य हैं। इसकी पहली ढाल की रचना सं० १९१२ मृ० कृ० १० तथा २३ वीं ढाल की रचना सं० १९३७ फा० शु० ४ की है। कुछ ढालों में रचना-समय का उल्लेख नहीं हैं। इस कृति की रचना एक साथ न होकर आवश्यकतानुसार समय-समय पर हुई है। बाद में सब को संकलित कर एक रूप दिया गया है। इस कृति का संक्षिप्त विषय-क्रम इस प्रकार हैढाल १ अनुशासन की आराधना क्यों और कैसे ? " २ क्षुद्र प्रकृति वाले व्यक्ति का चित्रण। " ३ अच्छी प्रकृति वाले व्यक्ति का चित्रण
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy