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________________ गये, पर कई दिनों बाद विचारों में परिवर्तन होने से पुनः संघ में आने के लिए प्रयास करने लगे। आचार्य भिक्षु उन्हें पूरा विश्वास होने होने के बाद ही वापस लेना चाहते थे। अतः उक्त लिखित की रचना हुई। मुनि अखेरामजी ने सभी उल्लिखित शर्तों को हस्ताक्षर पूर्व स्वीकृत किया तब उन्हें संघ में सम्मिलित किया गया। ढाळ १८–इसमें ६८ पद्य हैं। इसकी रचना १९१४ फा० कृ० ८ बीदासर में हुई । फत्तूजी आदि ४ साध्वियां अन्य सम्प्रदाय से भैक्षव गण में आने के लिए तैयार हुईं। दीक्षित करने से पूर्व स्वामीजी ने उनकी कसौटी करने की दृष्टि से आचार-विचार से संबंधित विशेष शिक्षाएं प्रदान की और कुछ बन्दोबस्त किए। यह सं० १८३३ मिगसर कृष्णा २ के दिन लिखे गए उस लिखित का अनुवाद है। ढाळ १९ - इसमें ३० पद्य हैं। इसमें उक्त सभी लिखितों का संक्षिप्तीकरण निचोड़ प्रस्तुत किया गया है । २. गणपति सिखावण गणपति सिखावण कृति कलेवर की दृष्टि से छोटी होते हुए भी भावों की दृष्टि से अलौकिक और अद्वितीय है। इसकी रचना मुख्य रूप से युवाचार्य श्री मघराजजी को माध्यम बनाकर की गई है, किन्तु अनागत सभी आचार्यों के लिए भी वह दिशा दर्शक है, ऐसा स्पष्ट उल्लेख है " पद युवराज शिष्य मघराज भणीं ए शिक्षा सारो । बले अनागत गणपति है, तसु एहिज सीख उदारी । " इसमें आचार्य को अपने कर्तव्य के प्रति सजग करते हुए संघ संबंधी छोटी से छोटी प्रवृत्ति पर भी विशेष ध्यान रखने की प्रेरणा दी है और गणवृद्धि की दृष्टि से ऐसे अनेक तथ्यों की ओर इंगित किया गया है जो बड़े मनोवैज्ञानिक और मनन करने योग्य हैं। इन तथ्यों के पीछे जयाचार्य के अनुभव बोल रहे हैं। इसकी रचना सं० १९२० चूरू चातुर्मास हुई है। इसमें ८७ पद्य हैं। ३. शिक्षा की चौपी संघ की व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से संचालित करने की दृष्टि से श्रीमज्जयाचार्य ने समय-समय पर विभिन्न विषयों पर महत्त्वपूर्ण शिक्षाएं प्रदान की हैं। इसमें संगीत के माध्यम से मनोवैज्ञानिक एवं तार्किक पद्धति से जिस प्रकार अनेक तत्त्वों को हृदयंगम कराने का प्रयास किया गया है, वह अपने ढंग का अनूठा एवं नई स्फूर्ति भरने वाला है । कई स्थलों को पढ़ते समय तो ऐसा लगता है, मानों हम कोई चलचित्र देख रहे हैं।
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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