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________________ १ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १. लय-पांडव बोलै बोल....... तेरापंथ : १५० ढाळ १२ अभ्र' पडल पंचरंग, अधिक आडंबर हो अंबर सोभै रह्यौ । बले इन्द्र धनुष गाज बीज, तन धन जोवन हो एम अथिर कह्यो ॥ जिम रमणी रंग पतंग, मात पितादिक हो लिछमी अथिर छै। विष फळ विषय विपाक, मधुर भोगवतां हो पिछताओ पछै ॥ जे दीसै परभात, मध्याह्ने न दीसै हो सुख संपत रता । मध्याह्णे ते नहीं रात, रजनी सुवणा हो ज्यूं सर्व असासता ॥ आम कुंभ फळ जेम, क्षिण भंग काया हो मुग्ध जांणै नहीं। दिन-दिन मरण नजीक, मात-पितादिक हो स्वार्थिया सही॥ जरा न घेयो आय, व्याध न व्यापी हो इंद्री हीणी नां पड़ी। त्यां लग धर्म संभाळ, तारो हो आत्म आपरी ॥ रित अरित दुख पात, जन्म जरा नो हो बलि मरवा तणो । संसार, नरक निगोदे हो दुख सह्यो घोर रुद्र काम क्रोध मद लोभ, तन मांहे तिष्टे हो किंकर ज्ञान दर्शन चारित्र, रत्न अमोळक हो लूंटण परगटा ॥ मात पिता सुत नार, क्षिण मात्रै विहडै सहु । हो स्वार्थिया इंद्र नरेंद्र सुरेन्द्र, काळ आयां थी हो सरणागत नहीं ॥ दुःख दावानळ मांहि, जीव प्रजळता हो दीसै बहु परै । आत्म तारण ताहि, संजम लीधां रो सिव पद संचरै ॥ मर्यादा और व्यवस्था घणो ॥ चोरटा ।
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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