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________________ धर्म करो सदा धर्मे आपद नायो रे, सुख लहै तदा ॥ धुपदं ॥ १ अनंतकाळ भमता थकां, रे, गर्भ तणां दुःख भोगवी रे, पाई उत्तम कुळ दीर्घ आउखो, बलि धर्म सामग्री पाय नै, मूर्ख मुरझै शब्द रूप रस गंध में, फर्श २ 3 ४ ५ ६ ७ अणगमता राग भाव रातो रहै, राखसणी रमणी कही, वैतरणी नरक नीसरणी जिन कही, मत ऊपर दीसै ओपती, अंतर अधिक असार । खेळ ग्रीवेग । संवेग ॥ विचार | धर्म श्रीजिन भव तरु मूल खंखार रुधिरे भरी, मूर्ख मत कर प्यार ॥ आउ सागर इकतीस नो, सुख विलस्या तो पिण तृपत हुओ नहीं, अब तो आंण काय फर्श रूप शब्द ना, मन परियार अपछर सुख बहु विलसिया, पिण तृप्त न हुआ काम किंपाक समा गिणो, समगति सूधी आज्ञा मझे, अधर्म आज्ञा सींची भेद सोळ जिन अनंतानुबंधी जावजीव रहै, वर्स इक अप्रत्याख्यान । प्रत्याख्यांनी च्यार मास रहै, पख संजळन पिछान ॥ समगत नै देश - विरत नै, च्यारुंइ आवा दै नहीं, अनुक्रम च्यार क्रोध विणासै पीत नै, मान विनय नो माया खोवै मित्रता, लोभै सकल ए च्यासं चंडाळ चोकड़ी, टालै ते रह्या, क्रोधादिक चिहुं जांण । भाखिया, अनर्थ करण पिछाण ॥ सर्व विरत अहक्खाय । कषाय ।। पास। विणास ॥ मतिवंत । आतम वस करै आपणी, ते गिरवो गुणवंत ॥ १४ कर् सेवा सतगुरु तणी, देइ सुपात्र दांन । कर्म कटक दल पेलवा, उपसम रस गलतान ॥ १. लय - कुमर तदा अनुमत थयो रे....... रहै ८ ९ १० १ १ ढाळ ११ १२ १३ पायो नर अवतार । सखर सामग्री सार रे ॥ तन लह्यो निरोग । भोग ॥ काम मनोहर पेख । धेख ॥ पर विष कर रामत बेल । खेल || ळिगार || धार । वार ॥ उपदेश री चौपी : दा० ११ : १४९
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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