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________________ २५ २६ २७ २८ २९ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ आचार्य श्री भिक्षु कृत ढाळ ' आहारपाणी साधु बहिरी ने ल्याया, संभोगी साधु ने बांट देवा री रीत । आप आण्यो जाणी अधिक लेवै, तो • अदत्त लागै जाये परतीत ॥ आ श्रद्धा श्री जिनवर भाखी || ध्रुपदं ॥ ठाणायंगो, पत्थ वत्थ आहार अति चंगो । आहारं, तिण में श्री जिन अणगारं, विण पांती लै गणपति अतिसय विण पांति लेवै त्यांरी आज्ञा सूं तिण में दोष नही छै कोई, कारण सूं दे विण पंती, तज मांगनें लहै लेवे, लज्जा तेहनों कुण अपजस नहीं संके अन्य नें कह ल्यो अन्य बरोबर वृद्ध तो छै बहु मुनि करे मुज भारो, इम आहारो, किम उदेड नें दै अज्जा, निज भार उपा देवै, 'अल्प गाउ' विहार' अज्जा, सुवनीत भद्र वर पिण उदीर ने नही पण उदेड जे नै नही अधिक गुणी मुनि धोरी जिम भार-धुरा लै, कोइ तसु उदीर भारो, तो पिण ते करै लेवे, तेहनी भारो, तो कीरत जे गुरु उपडावे तेहनो जस जबरी सूं जो कोई अथवा तेहनों जे कुरबवंत मुनि कहिये, जग में उगणीस वर्ष छावीसं, मृग० विद चउदस सुर भिक्षु भारीमाल ऋषिराया, जोड़ी जयजश सुख १. लय - मेघ कुमर हाथी रा भव में । २. लय - हरी बुरज पर बंगलो । ३. ठाणं ८ । १५ । ४. पथ्य । ५. वस्त्र । सुख तो समभाव समचित दै ते आज्ञा सारं ॥ कोई आहारं । होई ॥ ६. क्षमाशील । ७. चला कर । ८. थोड़े कोशों का छोटा विहार । ९. देवे । थी खंती । केवै ॥ लिगारो । भारो ॥ लज्जा । करेवै ॥ लज्जा । आलै ॥ नाकारो। केहवै ॥ तिणवारो । लहियै ॥ ईसं । पाया ॥ शिक्षा री चोपी : ढा० २२ : ११३
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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