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________________ १४ १५ जो कदाचित खीच उवेखै, तो सीज्यो अणसीज्यो देखै। ते पिण मन बांछित नावै, विन पांती इम सीदावै।। बीस तीस चाळीस करवाळी', ज्यां मांसू मांगै टाळी। रस इंद्रिय मोकळी मेली, लज्जा पिण दूरी ठेली॥ समभाव अज्जा मुनिरायो, करवाळी देवै तायो। तो कहै न दीधी आछी, रोस करिनै न्हांखै पाछी।। पांती खावण ने पाछो, दीधां कहै न दीयो आछो। मानै उत्तरतो दियो आहारं, तिण सूं अवगुण हुवो अपारं।। समचा' रो दे कोइ आहार, उतरतो आवै किवारं। (तो उणरौ) बैरी होय जावै पुरो, बिगाडै मुख नों नूरो॥ विन पांती ना फळ एहं, संतोस विना तसु देहं। निज पांती में रति पावै, तो ए अवगुण कि थावै ।। पर लाभ तणी नहीं चायो, सुखसेज्जा' कही जिन रायो। पर लाभ बांछे मांगतो, दुखसेज्जा कही भगवंतो।। जे असंविभागी६ संतो, अवनीत कह्यो भगवंतो। वर उत्तराध्ययन मझारो, ग्यारम अध्ययन उदारो।। ले असंविभागी लाधू, तिण ने कह्यो पापी साधू । सतरम उत्तराज्झयणो', ए वीर तणां वर वयणो।। असंविभागी नैं नहिं मोखो, दसवै०१० नवमें अवलोको। वर संविभाग जे साधै, जे तीजो१ व्रत आराधै।। कह्यो दसमें१२ अंग दयालो, वच बहु सूत्रे इम न्हाळो। इम जाणी ने जे सारो, संविभाग करी ले आहारो। २४ १.रोटी। २. पीछे रहने वाला। ३. नीरस। ४.समुच्चय-सबके लिए लाया हुआ। ५. ठाणं ४।४५१ ६. भक्त पान आदि का संविभाग न करने वाला। ७. उत्तरज्झयणाणि ११९ ८. प्राप्त। ९. उत्तरज्झयणाणि:१७।११ १०. दसवेआलियं ९।२।२२। ११. अचौर्यव्रत। १२. पण्हावागरणाइं८।१२। ११२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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