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________________ १ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ ढाळ १७ 'जिल्लो बांधण री नहीं जिन आगन्या रे || धुपदं ॥ निज स्वार्थ अर्थे गुरु आज्ञा बिना रे, आप रो रागी करै अयाण रे । अथवा गुरु भाई सुवनीत सूं रे, प्रतिकूल अर्थे जिल्लो पिछाण रे ॥ असणादिक रागी करवा आपणौ, विगय पय दही घृत नें मिष्ठान । सूखडी सरस आहार देइ करी, व्यंजण विविध प्रकारे जाण ॥ सुंदर वस्त्र पात्र देई करी, लिखी कोरा पाना फुन देह । आप रो रागी करवा तेह ॥ निज निरस समचै मेले ए रीत । बलै और नें सरस दे निरस लेइ करी, समचै मेलै इम करै अनीत ॥ उणरो बोझ उपाडी नें रागी करै, बले कार्य विविध करै धर प्रेम । गुरु काम भळावै ते टाळो करे, तिण नें निर्जरा रो अर्थी कहिये केम ॥ बले कार्य करावे ते पिण तेहनों, पक्षी तसु काम पड्यां दै लेखण रंग रोगानादिक दियै, असणादिक थोड़ो मंगावी करी, उणरे बदळे बीजां साधां भणीं, बिरओ बोलतो नाणै लाज ॥ इमहिज विगयादिक लेवै तिको, तेहनें बदळे पख खांचे जांण । 'कवा रो घाल्यो ३ नीचो जोवतो, टुकड़ो न्हाख्यो जिम श्वान पिछाण ॥ उपराठो वरतै आचारज थकी, दोनूंई मोह मतवाळा" धींग | खामी पड़ियां निषेधै जो एकनें, तो दोनूंई स्हांमा मांडै सीग ॥ प्रतिकूल वरते मुनि सुवनीत सूं, अवनीत सूं हेत गुष्ट अवलोय । अवनीत नें या लखण कर ओळखौ, च्यार तीरथ में फिट- फिट होय ॥ 'तुकम तासीर असर सौबत '६ तणों, एह ओखाणो छै जग मांय । अविनीत सूं हेत गुष्ट राखै घणों, गुणां री बधोतर किणविध थाय ॥ टाळोकर निंदक ते सासण तणों, प्रत्यनीक गणपति नो गणमांय । कोइ प्रत्यनीक गुष्ट हेत राखै घणों, यां तीनां रो अपजस अधिको थाय ।। काम करै करावै और साध पै, निर्जरा रो अर्थ थको उमेद । ते पिण सतगुरु नी आज्ञा थकी रे, तेहनों नहीं छै इहां निषेध ॥ १. लय २. अपशब्द । ३. कवल - ग्रास के लालच में। ४. विपरीत । जिनवर गणधर मुनिवर ने । ५. हट्ठा कट्ठा । ६. बीज जैसा फळ, संगत जैसी रंगत ७. कहावत । शिक्षा री चोपी : द्वा० १७ : साज । १०५
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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