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ढाळ १६
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'सुख तो हौवे छै प्रकृति सुधारिया रे, आसा तृष्णा में दूर निवार रे। सुवनीत चित कैड़े वरते सदा रे, सासण ऊपर दृष्टि सुधार रे॥
सुख तो हौवे छै प्रकृति सुधारियां रे ॥ध्रुपदं ।। निज करनां दीक्षित जे मुनि महासती, कन्है राखण री न करै हाम। आज्ञा दियां विण कलुषपणों नहीं, प्रीति गणपति सूं अति अभिराम ।। कुरब बधावै मुनि अज्जा तणों, तो पिण विमन न हुवै मन मांहि। न करै जेहनों खेधो ईसको, राखै तिण सू पिण हेत सवाय ।। दीक्षा में दीर्घ तथा लघु मुनि अज्जा, बद्धि करी अल्प तथा अधिकाय। कुरब बधावै गणपति तेहनो, तिण सूं पिण अनुकूल वरते ताय॥ गुरु आपै असणादिक उपधि अन्य भणी, खेत्र भळावे चोखो जाण। तो पिण न करै तिणरो ईसको, सुविनीत नां लक्षण एह पिछाण ।। बांको नहीं वरते तिण सूं सर्वथा, छळ बळ माया न करै रंच । अखंड आराधै मर्यादा गुणी, अधिकी गणपति सूं प्रीत सुसंच।। कठण वचन में गणपति सीख दै, च्यार तीरथ में दीये निषेध । तो पिण कलुष भाव आणै नहीं, सुवनीत सासण तिलक संवेद ।। न करै उत्तरती गण नी बारता, न सुणै उत्तरती किण ही बार। सासण दीपावै नित्य परिसद मझै, ते सुवनीत सासण रा सिणगार।।
संवत उगणीसे वर्ष चौबीस में, वैसाख सुकल बीज भृगुवार । __ सासण थंभ भणी ओळखावियो, जयजश आनन्द हरष अपार॥
१.लय - जिनवर गणधर मुनिवर ने। २. मानसिक जलन। १०४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था