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________________ १ २ ३ ४ ५ ढाळ १४ शिष्य उवाच 'होजी स्वामी ! सरणे आयो गण नाथ, सीखडली आछी आपौ म्हारा स्वाम ! | होजी स्वामी ! परम उपगारी मुज आप, अविचळ थिर पद थापो म्हारा स्वाम ! ॥ गुरु उवाच - हां रे चेला ! सुवनीतां रो कीजै संग, वारु जस कीरति बाधे । म्हांरा शिष्य ! | हां रे चेला चरण समकित दिढ होय, ज्ञानादिक वर गुण लाधे म्हांरा शिष्य ! | शिष्य उवाच हो जी स्वामी ! कोई अविनीत हित करें- आय, ललचावे मीठो बोली । म्हारा स्वाम ! | हो जी स्वामी ! स्यूं करिवो गणनाथ आखीजे सीख अमोली म्हांरा स्वाम ! ॥ गुरु' उवाच हां रे चेला ! मन में विचारणो एम, दुखदाई खुद्र घणो है म्हांरा शिष्य ! | हां रे चेला ! इण सूं पीत कियां पत जाय, गणि स्यूं प्रतीकपणो है म्हांरा शिष्य! | हां रे चेला ! हित करणो नर देख, गणपति नों कुरब निहाली । म्हांरा शिष्य ! हां रे चेला ! परम विनीत संपेख, तसु संगति सिव ! पटसाली म्हांरा शिष्य ॥ १. लय : हां जी बना ! गोरी में मोत्यां जितरो भार ४. पृष्ठशाला २. प्रेम । ३. प्रतिष्ठा शिक्षा री चोपी : ढा० १४ : ९७
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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