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ढाळ १३.
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'क्यूं रे तोय लज्जा न आवै, भटकत गण थकी बार।
ओरन कू उपदेस देत है, आप चरण कियो छार॥ स्वाम भिक्षु नी भांगी मर्यादा, फिट-फिट हुओ जगत मझार॥ अनंत सिद्धांरी आण भागी ने, अवगुण बोलै मूढ गिंवार। कुक्कडधम सरीखो टाळोकर, दीधो जीतब जनम बिगाड़। नंदण वन भिक्षु गण थकी नीकळी, गयो जमारो हार। टाळोकर भव-भव दुख पावै, कहितां नावै पार॥ निज आतम ने निंद परिषद में, तजी मान अहंकार।। अजेस. पगे तूं लाग सतगुरु रे, जो चाहै सुख सार॥ उगणीसै गुणबीसै चेत विद में, बीज तिथ रविवार।।
१. लय क्यूं रे तोय ळज्जा न आवै नाम फकीर धरावै। २. भस्म। ३. एक घने बालों वाला कुत्ता भोजन का तलाश में नीलगर की कुण्ड में गिर गया बाहर निकलने पर उसकी रंग-विरंगी सूरत से डरते हुए अन्य जानवरों ने कौतुक से पूछा-तुम कौन हो ? तब ऊंचे टीळे पर बैठे हुए उसने रौब जमाते हुए कहा-"मेरा नाम है कुक्कडधम" मुझे जानवरों का राजा बनाकर भेजा गया है। भोले जानवर इस बात को सच मानकर उसकी सेवा करने लगे। पर सायंकाळ के समय जब गांव के कुत्ते भौंकने लगे तो इससे भी नहीं रहा गया और भौंकते ही इसकी सारी पोल खुल गई। तब कुछ हिंसक जानवरों ने इसका काम तमाम कर दिया। ४. अब भी।
९६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था