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________________ शिष्यउवाचहो जी स्वामी ! गणपति सुगुरु सुजाण, सीखड़ली दै किण बारे । म्हारा स्वाम हो जी स्वामी ! कोमल कठिन विचार, चिंतावणौ स्यू तिण वारे, म्हारा स्वाम! ॥ गुरु उवाचहां रे चेला ! मुज हित काज महाराज, सीखडली मुज ने देवै, ___म्हारा शिष्य ! हां रे चेला ! साधण सिवपुर राज, सुविनीत इसी मन वेवै ! म्हारा शिष्य ! ॥ शिष्य उवाचहो जी स्वामी ! क्रोध आवै किण वार, किण विध ते निर्फल कीजे। म्हारा स्वा० !। गुरु उवाचहां रे चेला ! क्रोध कटुक फळ न्हाळ, समता रस मन में पीजै। ___म्हारा शिष्य ! ॥ हां रे चेला ! संत सती गण मांय, सुख माने अधिक सवायो। __ म्हारा शिष्य ! हां रे चेला ! सासण सोभ बढाय, दीपावै ते अधिकायो म्हारा शिष्य ! १० हां रे चेला ! गणपति ना गुणग्राम, करतो सुणतो हुलसावै । म्हारा शिष्य ! हां रे चेला ! गुरु भक्तां सूं हेत, तसु गुण पिण मुख सूं गावै। म्हारा शिष्य ! ११ हां रे चेला ! बाल वृद्ध बहु संत, रंगरत्ता सासण मांह्यो। म्हारा शिष्य ! हां रे चेला ! फल्या-फूल्या रहै जेह, तसु दिन सुख मांहे जायो। म्हारा शिष्य ! १२ हां रे चेला ! कोई अविनीत दुःख वेदंत, ते पिण पांती रो जाणी। म्हारा शिष्य ! हां रे चेला ! विगय भोगवै तेह, पांती रो बलि अनपाणी। म्हारा शिष्य ! ९८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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