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ढाळ ११
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'स्वाम के वच प्यारे॥ म्हे तो दीठो न गणपति एहवो,स्वामी जिन जेहवो ॥ध्रुपदं॥ शिष्य शिष्यणी आचार्य नाम, दीक्षा देइ नैं सूंपणा ताम।। कन्है राखण नी अभिलाखे, गुरु आज्ञा बिना किम राखे। राखै कन्है राखण नी हामो', त्यांरा किण विध सीझै कामो॥ दीक्षा लेण वाळो सुविनीत, राखै गुरु सेवा सूं प्रीत॥ बिहूं वरतै गणि अभिप्रायो, तिणरे दिन-दिन हरष सवायो॥ परिणाम भांगें मति हीणो, तिणरा उभय भवे पुन क्षीणो।। सैखे काळ चौमासे मैले, सुविनीत तुरत वच झैले। प्रवरतै मन वच कायो, ओ तो जिम गणपति अभिप्रायो॥ चौमासो उतरियां दरसण चावै, आय गणि रै चरणां लगावै॥ अंस उतरती नहीं करणी, ए भिक्षु मर्यादा आदरणी।। ए मर्यादा भांग्यां महापापो, सहै परभव दुख संतापो॥ भाग्य जोगे भिक्षु गण पायो, ओ तो चिंतामणी कर आयो। एहथी टळियै नरक निगोदा, पामै शिव सुख परम प्रमोदा।। उगणीसै वर्ष उगणीसं, वारू जयजश हरष जगीशं ॥
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१. लय- ज्यारे शोभे केसरिया। २. तमन्ना। ९४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था