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एहवी भिक्खू नी मर्याद भारी, सुविनीत हिया में धारी। दीक्षा लैवे ते पिण गुणवान, लिखत प्रमाणै राखै ध्यान॥ दीक्षा देण वालो लेण वालो, सुविनीतां रो लेखो ऐ न्हालौ। मांहोमांहि न राखै ललपल्लो', इम होसी दोनां रो भल्लो।। इम रहै दोनां री ळाज, तिणरा सीझे बंछित काज। एहवी मन मांहि पहिली विचारै, दीक्षा लेवै दैवै सुखकारै। एहवी शक्ति पोता री जाणै, तो और करणी सेती चित ठाणे। दीक्षा देवा रो तो मोटो काम, देणी पोता रा देख परिणाम। शक्ति देखी करै संथारो, कीधां पाछै पोहचावणों पारो। इम दीक्षा दैवे मुनिराज, जद रहै पोता री ळाज।। संवत उगणीसै वर्ष अठारे, फागुण सुदि एकम शनिवारे। शिक्षा जयजश गणपति आपी, सुविनीतां हियै थिर थापी॥
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१. अंतरंग संबंध।
शिक्षा री चोपी : ढा० १० : ९३