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________________ ढाळ ४ दूहा पाटे वीर तणै प्रगट, सुधर्म जंबू आद। दुप्पसह लग दीपावसी, जिन गाधी अह्लाद ।। गणपति गहरारे, सुध श्रमण संपदा संत सत्यां सिर सेहरा रे॥गण०॥ सुध सीख समापी, शिष्य सुविनीत सुमेरा रे ॥गण०॥ पद प्रगट वीर ने जयजस हरस घणेरा रे॥गण० ध्रुपदं॥, चरण . बड़ा अथवा छोटा नैं, वय लघु वृद्ध वखाणी रे। गणपति थापै तास मानणौ, (ए) रीत पंरपर जाणी रे ॥गण०॥ आचारज नी इच्छा वै तसु, वर पट-पदवी वरणी। संत अवर अथवा श्रावक नैं, किंचित तांण न करणी॥ किंचित मन मेलौ नवि करणो, आडडोड मत आणो। बांक सहित वच मूल न वदणो, तरक जिलो मत ताणों। अग्निहोत्रि जिम अग्नि आराधै, तिम सिष सुगुरु आराधै। रुडौ विनय करी रीझायां, शिष्य ज्ञान पट साधै॥ नहीं छै चरण वृद्ध लघु लेखो, इमहिज बुध नों लेखो। सुगुरु रिझायां गणपति आपै, दसवैकालिक देखो।। विनय धर्म नों मूळ कह्यौ वर, निपुण प्रथम गुण निरखी। अवर सुगुण पाछे अवलोके, पद दीयै गुण परखी। पद लायक दो च्यार आदि मुनि, सहुनी बुध नहीं सरखी। अधिक विनय सूं सुगुरु रिझायां, हद गणि पद दै हरखी।। गणपति उचित जाण पद दैवे, तास बडा सदहीजै। पट थाप्यो तसु लघु मुनि, तीजै-पद में आदि आणीजै। आचारज, अरु बड़ा संत तिम, तीजै पद रे मांही। समचे आचारज में वंदै, नाम लियां विन ताही।। १० ३ अ०९उ०३गा०३ । १. पंचम आरे के अंत में होने वाले अंतिम मुनि। २. लय-हीडै हालो रे। शिक्षा री चोपी : ढा० ४ : ८१
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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