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प्रथम गणी नैं
बड़ा संत पिण आचारज सूं, पडिकमणा में आलोवण ले आण आराधै, बीजो न करै बिहार करी नै श्रमण आवियां, गणपति बड़ा मुनि ने ऊंचे आसण गणपति बैठा, बड़ा महितळ बैठा तो पिण गणि नें, सैखे काळ चउमासे चउमासो उत्तरियां २१ एकण री
साध - साधवियां
शिष्य - शिष्यणी
अवर तणें नामें
आचारज
नै
गृहस्थ पिण तसु आचारज ने जो न
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२०
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पद युवराज समाप्या, मन होवै तौ पट नवि
भारीमाल तो पट
नही
जय ज्यांही।
तिण सेती पट
बेसण
दीसै कांइ ॥
वैसे,
मन इच्छा
सूं
गणि पट
संत सत्यां ने सोयो ।
अंस मात्र पिण
ताण न करणी, अजर मिसै अवलोयो | काम, बोझ छोड़ो मुज केरो, दीक्षा आणा दीजै । इत्यादिक बहु विविध पणै वच, किंचित तांण न कीजै ॥
आपो ।
थापो ॥
बिहार करी ने बड़ा संत पिण, आयां, गणपति सनमुख-गमन तणों नही कारण, स्थिर वंदन नी बिहार करी नैं बड़ा आवियां, गणपति ऊभा थाई । आसण छोडी, वंदणा करणी, अधिक किया अधिकाई ॥
पेखो ।
लेखो।
वंदै ।
आनंदे ॥
आज्ञा में
रो मारग
ते
सुगुणां
नहीं
जो
गृहस्थ पिण हेले
संवत
प्रवर जय गणी
पाछै मन हुवै तो पट बैइसे ।
रहस्यै ॥
इच्छा
बैसे, गणपत
बैठा
बैठा', केरौ,
रहिवै,
आचारज नी
आणा ।
गुरु दिसि, विहार करै मुनि स्याणा | रहिणो, संत सती सुविनीतो । चाळै, जठा तांइ ए रीतो ।।
पिण, गणपति नामें
उगणीसै ने
तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
वंदै
निंदै
ऋषि,
कारण न
करणा, गुणसठा लिखत में
आराधे,
श्रमण आराधक
पूजै,
अराधे,
पाछे,
बादै अति
आगे ।
संत तसु असातना नही ळागै ॥
तेरे,
तसु, दसवैकालिक
पोह
समापी,
दसवैकालिक
श्रमण भणीं पिण
सीख
१. अपने पदारोहण दिवस को उत्सव के रूप में नहीं मनाया
२. अ० ५ उ० २ गा० ४५ ।
३. अ० ५ उ० ५ गा. ४०|
करणा ।
निरणा ।।
सारो ।
मझारो ॥
नांहि ।
मांहि ॥
पेखो।
सुदी सातम सुविनीतां रो ळेखो ||