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________________ ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ प्रथम गणी नैं बड़ा संत पिण आचारज सूं, पडिकमणा में आलोवण ले आण आराधै, बीजो न करै बिहार करी नै श्रमण आवियां, गणपति बड़ा मुनि ने ऊंचे आसण गणपति बैठा, बड़ा महितळ बैठा तो पिण गणि नें, सैखे काळ चउमासे चउमासो उत्तरियां २१ एकण री साध - साधवियां शिष्य - शिष्यणी अवर तणें नामें आचारज नै गृहस्थ पिण तसु आचारज ने जो न १९ २० २२ २३ २४ २५ / ८२ पद युवराज समाप्या, मन होवै तौ पट नवि भारीमाल तो पट नही जय ज्यांही। तिण सेती पट बेसण दीसै कांइ ॥ वैसे, मन इच्छा सूं गणि पट संत सत्यां ने सोयो । अंस मात्र पिण ताण न करणी, अजर मिसै अवलोयो | काम, बोझ छोड़ो मुज केरो, दीक्षा आणा दीजै । इत्यादिक बहु विविध पणै वच, किंचित तांण न कीजै ॥ आपो । थापो ॥ बिहार करी ने बड़ा संत पिण, आयां, गणपति सनमुख-गमन तणों नही कारण, स्थिर वंदन नी बिहार करी नैं बड़ा आवियां, गणपति ऊभा थाई । आसण छोडी, वंदणा करणी, अधिक किया अधिकाई ॥ पेखो । लेखो। वंदै । आनंदे ॥ आज्ञा में रो मारग ते सुगुणां नहीं जो गृहस्थ पिण हेले संवत प्रवर जय गणी पाछै मन हुवै तो पट बैइसे । रहस्यै ॥ इच्छा बैसे, गणपत बैठा बैठा', केरौ, रहिवै, आचारज नी आणा । गुरु दिसि, विहार करै मुनि स्याणा | रहिणो, संत सती सुविनीतो । चाळै, जठा तांइ ए रीतो ।। पिण, गणपति नामें उगणीसै ने तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था वंदै निंदै ऋषि, कारण न करणा, गुणसठा लिखत में आराधे, श्रमण आराधक पूजै, अराधे, पाछे, बादै अति आगे । संत तसु असातना नही ळागै ॥ तेरे, तसु, दसवैकालिक पोह समापी, दसवैकालिक श्रमण भणीं पिण सीख १. अपने पदारोहण दिवस को उत्सव के रूप में नहीं मनाया २. अ० ५ उ० २ गा० ४५ । ३. अ० ५ उ० ५ गा. ४०| करणा । निरणा ।। सारो । मझारो ॥ नांहि । मांहि ॥ पेखो। सुदी सातम सुविनीतां रो ळेखो ||
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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