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उसकी मूर्ति अथवा चित्र देखकर होगा। इस तरह नाम की अपेक्षा मूर्ति में विशेष गुण निहित
हैं।
किसी व्यक्ति ने कभी साँप को नहीं देखा, केवल उसका नाम सुना है । इतने मात्र से उस पुरुष को किसी स्थान पर सर्प देखने पर 'यह सर्प है' ऐसा ज्ञान होगा ? नहीं होगा। परन्तु सर्प का आकार जिसने जाना होगा, वह सर्प को प्रत्यक्ष रूप में देखते ही उसे पहिचान जाएगा।
इस प्रकार जिस व्यक्ति ने मनुष्य विशेष को देखा नहीं, और न उसकी तस्वीर देखी है; केवल उसका नाम सुना है तो वह व्यक्ति किसी समय उस मनुष्य के निकट से भी निकल जाय तो भी उसे पहिचान नहीं सकेंगा, परन्तु जिस व्यक्ति ने उसकी तस्वीर देखी होगी, वह शीघ्र उसे पहिचान जाएगा कि 'यह वह व्यक्ति है' इस पर से भी सिद्ध होता है। कि प्रत्येक वस्तु का स्वरूप पहिचानने के लिए नाम जितना उपयोगी है, उसकी अपेक्षा मूर्ति अथवा आकार अधिक उपयोगी है।
प्रश्न 26
जब कारीगर द्वारा निर्मित मूर्ति पूजनीय है, तो उसका निर्माता कारीमर विशेष पूजनीथ क्यों नहीं?
उत्तर - कारीगर प्रतिमा को बनाने वाला है न कि उस व्यक्ति को जिसकी वह प्रतिमा है। बीज को धरती में बोया जाता है, खाद डाली जाती है और कृषक के परिश्रम से ही उन बीजों से अन्न उपजाया जाता है। फिर भी अनाज को खाने वाले मिट्टी अथवा खाद आदि खाना पसन्द नहीं करते।
श्री जिनप्रतिमा बनती है पत्थर आदि से, उसे बनाता है कारीगर, पर उसका स्वरूप तो श्री वीतराग परमात्मा का है। यदि कारीगर श्री वीतराग परमात्मा का ही सर्जक होता तो वह अवश्य पूजनीय बनता, परन्तु ऐसा तो नहीं है । पतिव्रता स्त्री पति के फोटो का आदर करती है पर फोटोग्राफर का नहीं। शास्त्रों को लिखने वाले प्रतिलिपिकार हैं, पर क्या वे पूजनीय है ? नहीं है। क्योंकि शास्त्रों का उद्भवस्थान प्रतिलिपिकार नहीं है । वे तो केवल नकल करने वाले हैं।
शास्त्र पूजनीय होने से शास्त्रकार पूजनीय माने जाते है, तथा शास्त्रकार पूजनीय होने से उनके द्वारा रचित शास्त्र पूजनीय माने जाते है । यह बात बिल्कुल ठीक है। इसी तरह श्री जिनेश्वरदेव पूजनीय होने के कारण उनकी प्रतिमा भी पूजनीय गिनी जाती है, परन्तु प्रतिमा को बनाने वाला कारीगर नहीं। किसी प्रिय अथवा पूज्य व्यक्ति के चित्र में अधिकाधिक यथार्थता लाने वाला व्यक्ति पुरस्कार का पात्र बनता है। ठीक उसी तरह वीतरागता की सुन्दर छाया रूप में श्री जिनमूर्ति को बनाने वाला कारीगर आनन्द देने वाला व इनाम का पात्र बनता है।
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