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________________ प्रश्न 24 - निरालम्बन ध्यान कब तक नहीं हो सकता? उत्तर - श्री जैनशास्त्रों में मोक्ष रूपी महल पर चढ़ने के लिए चौदह सीढ़ियाँ रूपी चौदह गुणस्थानक वर्णित है। उनमें से प्रथम पाँच गुणस्थानक गृहस्थों के लिए है और शेष गुणस्थानक साधुओं के लिए है। छठे गुणस्थानक का नाम प्रमत्त तथा सातवें का नाम अप्रमत्त है। सम्पूर्ण आयुष्य के काल में, सातवें गुणस्थानक का काल गिना जावे, तो भी अन्तर्मुहूर्त मात्र का ही है। सात से ऊपर के गुणस्थानक इस काल में विद्यमान नहीं है। मुख्यतया प्रथम छह गुणस्थानक इस काल में विद्यमान हैं। साधु के छठे गुणस्थानक में भी पाँच प्रकार के प्रमाद सम्भव होने से निरालम्बन ध्यान हो ही नहीं सकता। गृहस्थ तो अधिक से अधिक पाँचवें गुणस्थानक तक ही पहुँच सकते हैं। वह तो अवश्य प्रमादी है। प्रमादी व्यक्तियों को निरालम्बन ध्यान के लिए अयोग्य बताया है। श्री गुणस्थान क्रमारोह में पूज्यपाद श्री रत्नशेखर सूरीश्वरजी महाराजा ने फरमाया है कि - प्रमाद्यावश्यक त्यागात्, निश्वलं ध्यानमाश्रयेत् । योऽसौ नैवागमं जैनं, वेत्ति मिथ्यात्वमोहितः ||1|| अर्थ- स्वयं प्रमादी होने पर भी जो आत्मा अवश्य करणीय का त्याग करती है तथा निश्चल जैसे निरालम्बन ध्यान का आश्रय करती है, वह विपरीत ज्ञान से मूर्ख बनी आत्मा, श्री सर्वज्ञ भगवान के आगमों को नहीं जानती है। इस काल में जीव सातवें गुणस्थानक से ऊँचा नहीं चढ़ सकता है और सातवें गुणस्थानक का समय तो बहुत थोड़ा है; अतः जीव को छठा तथा इससे उतरता गुणस्थानक होने से निरालम्बन ध्यान सम्भव नहीं है। इस काल के बड़े और समर्थ पुरुष भी जब निरालम्बन ध्यान का मनोरथ मात्र किया करते हैं, तो अल्प शक्ति वाले तथा विषय-वासना में डूबे रहने वाले व्यक्तियों के लिए तो निरालम्बन ध्यान हो ही कैसे सकता है? प्रश्न 25 - कोई विघया अपने मृत पति की मूर्ति बनाकर पूजा-सेवा करे तो क्या इससे उसकी काम-तृप्ति अथवा पुत्र-प्राप्तिहोती है? नहीं होती तो फिर परमात्मा की मूर्ति से भी क्या लाभ होने वाला है? उत्तर - यह एक कुतर्क है। इसका उत्तर भी उसी प्रकार देना चाहिए। पति की मृत्यु के पश्चात् उसकी स्त्री एक आसन पर बैठकर हाथ में माला लेकर पति के नाम का जाप करे तो क्या उस स्त्री की इच्छा पूरी हो जाएगी या उसे सन्तान प्राप्ति हो जाएगी ? नहीं होगी। तो फिर प्रभु के नाम की जपमाला गिनना भी निरर्थक सिद्ध होगा। प्रभु के नाम से कुछ भी लाभ नहीं होता, ऐसा तो कोई नहीं कह सकता। इसके विपरीत उसी विधवा स्त्री को पति का नाम सुनने से जो आनन्द और स्मरण आदि होगा उसकी अपेक्षा दुगुना आनन्द तथा स्मरणादि उसे 90
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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