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________________ कि गुण से तो श्री ऋषभदेव और वर्धमान स्वामी समान हैं, फिर श्री वर्धमान स्वामी का नाम लेते ही भगवान ऋषभदेव क्यों याद नहीं आते? यदि गुण का नाम वर्धमान होता तो इस गुणवाले सभी व्यक्ति इन गुणों के साथ याद आ जाने चाहिये। परन्तु 'महावीर' अथवा 'वर्धमान' नाम लेने से केवल भगवान महावीर' याद आते है, इसका क्या कारण है? ___ इसका कारण एक ही है कि महावीर नाम केवल उनके गुण का ही नहीं पर आकार का भी है। भगवान महावीर का आकार और भगवान ऋषभदेव का आकार एक नहीं है, इसीलिये एक का नाम लेते समय दूसरे याद नहीं आते हैं। इससे यह स्वीकार करना पड़ेगा कि नाम में गुण प्रधान नहीं, परन्तु आकार ही प्रधान होता है। इसके उपरान्त भी जो नाम को मानकर आकार को मानने से इन्कार करते हैं, वे मूर्ख हैं। जहाँ आकृति नही, वहाँ नाम नहीं और जहाँ नाम नहीं, वहाँ आकृति नहीं, इस प्रकार दोनों का पारस्परिक सम्बन्ध नहीं है। अतः नाम और उसके स्मरण का फल मानने वाले को आकार तथा उसकी भक्ति का फल भी अवश्य मानना चाहिए। प्रश्न 14 - वस्तु की अनुपस्थिति में उसके यथार्थ स्वरूप को जानने के उपाय को ही क्या आकार कहते हैं? उत्तर - प्रत्येक अनुपस्थित वस्तु का यथार्थ स्वरूप केवल उसके नाम द्वारा नहीं जाना जा सकता परन्तु आकार द्वारा ही जाना जा सकता है। सिंह या बाघ का नाम जानकर कोई जंगल में जाये तो नाम मात्र की जानकारी से वह सिंह या बाघ को नहीं पहचान सकता है। उनकी पहचान के लिए नाम के साथ-साथ आकार का ज्ञान भी आवश्यक है। इस कारण अनुपस्थित वस्तु का बोध कराने के लिए अकेला नाम समर्थ नहीं हो सकता। साथ ही आकृति ज्ञात हो, पर नाम मालूम न हो तो उस वस्तु का बोध होना तो सर्वथा अशक्य है। अर्थात् बोधक शक्ति, नाम की अपेक्षा आकार में विशेष रूप से है। प्रश्न 15 - क्या जड़ को चेतन की उपमा दी जा सकती है? उत्तर - वस्तु के धर्म अनन्त हैं। प्रत्येक धर्म के कारण वस्तु को, भिन्न-भिन्न अनन्त उपमाएँ दी जा सकती हैं। एक लकड़ी पर बालक सवारी करता है तब लकड़ी जड़ होते हुए भी उसे चेतन घोड़े की उपमा दी जाती है। पुस्तक अचेतन होते हुए भी उसे ज्ञान या विद्या की उपमा दी जाती है। इसी प्रकार सम्यग्ज्ञान तथा धर्म, ये आत्मिक वस्तुएँ होते हुए भी, इन्हें कल्पवृक्ष एवं चिन्तामणि रत्न की उपमा दी जाती है। वस्तु के अनन्त गुणों में से कोई भी गुण लेकर उसके द्वारा जो-जो कार्य सिद्ध होते हैं उस-उस प्रकार की उपमा देने का व्यवहार विश्वप्रसिद्ध है। परमात्मा की मूर्ति से परमात्मा का ज्ञान होता है, इससे उस मूर्ति को भी परमात्मा कहा जा सकता है। पाँच सौ रुपये की हुंडी या नोट को पाँच सौ रुपया ही' कहते हैं। -84
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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