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पर चढ़ने का अविवेक पूर्ण प्रयत्न करने से वह स्थान तो बहुत दूर रह जाता है, विपरीत नीचे गिरने से हाथ-पैर अवश्य टूट जाते है ।
परन्तु इसके
अब यदि कोई प्रश्न करता है कि संसार पर राग कम किया और भगवान पर राग बढ़ाया तो इसमें भी गग तो कायम ही रहा। जब तक राग-द्वेष-रहित नहीं बनेंगे तब तक मुक्ति कैसे मिल सकती है ? यह प्रश्न भी नासमझी का है। पूर्ण रूप से राग रहित होने की शक्ति नहीं आवे तब तक प्रभु के प्रति राग रखने से संसार के अशुभ राग तथा उनसे बंध होनेवाले बुरे कर्मों से बचा जा सकता है। घर बैठे जितनी अनेक प्रकार की वैभाविक चर्चाएँ होती हैं उतनी जिनमन्दिर में नहीं हो सकती ।
प्रभु की शान्त मूर्ति के दर्शन से तथा उनके गुणगान में लीन होने से चित्त में दुष्ट भाव तथा बुरे विचार टिक नहीं सकते। इतना ही नहीं परन्तु उन्हें दूर हटाने का एक मुख्य साधन भी प्राप्त हो जाता है। जब तक पूर्ण विशुद्धि प्राप्त न हो, तब तक जीवन को उच्च मार्ग की ओर ले जाने का केवल यही उत्कृष्ट पथ है। जो इस मार्ग में विश्वास नहीं रखते तथा अपने आप को पूर्ण विशुद्ध मानकर समभाव-साधक मानते हैं, उन्हें यह पूछना चाहिए कि यदि तुम वास्तव में राग-द्वेष से परे हो तो तुम अपने गुरु एवं अन्य नेताओं का आदर कर उन पर राग क्यों करते हो? उनके आहार, वस्त्र एवं पात्रादि के प्रति सम्मान भाव क्यों रखते हो? क्या यह राग रहित होने का प्रतीक है? समभाव में लीन व्यक्ति के लिए सदा सामायिक है, तो गुरु के पास जाकर सामायिक तथा प्रतिक्रमण आदि करने का क्या प्रयोजन
है?
स्त्री-पुत्रादि प्रिय वस्तुओं के संयोग से हर्ष तथा उनके वियोग से शोक; धन, माल, हा आदि के नाश से संताप तथा उनकी प्राप्ति से हर्ष, वैसे ही किसी दुष्ट व्यक्ति के, बुरे वचन कहने पर तथा कष्ट देने पर क्रोध तथा सम्मान देने पर आनन्द, ऐसी बातों से राग-द्वेष तो प्रत्यक्ष प्रकट ही है। उनमें फिर कारण अथवा आलम्बन के बिना समता भाव पैदा करने की बात करना क्या ढोंग नहीं है ? मेरा घर, मेरी स्त्री, मेरा धन, मेरा पुत्र, मेरा नौकर आदि मेरा-तेरा करने का जिनका स्वभाव निर्मूल नहीं हुआ, उनको समदृष्टि वाले कैसे कह सकते
जो सम्पत्ति तथा विपत्ति में, शत्रु एवं मित्र में, स्वर्ण और पत्थर में तथा रल और तृणसमूह में कोई भी भेद-भाव नहीं रखते, वे ही वास्तव में समभावशाली, आत्मज्ञानी तथा उच्चकोटि के साधक हैं। आज के युग में ऐसे महान् व्यक्ति कितने है ? विश्व का बड़ा भा दुनियादारी की झंझटों में फँसा हुआ है। उनके लिए 'अपने आपको आत्मज्ञानी' सिद्ध करने,
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