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ही होती है और इसी कारण ऐसे राजा-महाराजाओं की तथा महान् पराक्रमी पुरुषों की प्रतिमाएँ उनकी यादगार में बने हुए स्थानों पर नजर आती है।
3. परदेशवासी अपने स्वजन आदि के हस्ताक्षर वाले पत्र को देखकर भी अपने हितैषियों के स्नेहमिलन जैसा सन्तोष अनुभव करते हैं।
4. अपने ज्येष्ठ तथा इष्टमित्रों की तस्वीर देखकर उनके उपकार और गुणों का स्मरण हो आता है और हृदय प्रेम से पुलकित हो जाता है।
5. कामशाला में श्री-पुरुषों के विषय-सेवन के चौरासी आसन आदि देखने से कामीजनों को तुरन्त कामविकार उत्पन्न होता है।
6. योगासन की विचित्राकार स्थापना देखने से योगी पुरुषों की बुद्धि योगाभ्यास में प्रीति को धारण करने वाले होती है।
7. भूगोल का अभ्यास करने वाले नक्शादिदेखकर विश्व की अनेक यस्तुओं का ज्ञान आसानी से कर सकते हैं।
8. शास्त्र सम्बन्धी अक्षरों की स्थापना से उनको देखने वाले मनुष्य को तमाम शास्त्रों का ज्ञान भी हो जाता है।
9. खेतों में पुरुष की आकृति खड़ी करने से यह आकृति निर्जीव होते हुए भी उसके द्वारा खेत की रक्षा अच्छी तरह से हो सकती है।
10. लोगों में कहावत है कि अशोक वृक्ष की छाया चिन्ता को दूर करती है। चंडाल पुरुषों की अथवा रजस्वला स्त्रियों की छाया अशुभ असर करती है और गर्भवती स्त्री की छाया का उल्लंघन करने से योगी पुरुषों का पुरुषार्थ नष्ट होता है - यह विज्ञानसिद्ध है।
11. सती खी का पति परदेश गया हो तय यह खी अपने पति के फोटो का रोज दर्शन कर संतोष प्राप्त करती है। श्री रामचन्द्रजी यनवास गये तय उनके भाई भरत महाराजा, राम की चरण-पादुका को राम की तरह ही पूजते थे। सीताजी भी राम की अंगूठी को हृदय से लगाकर राम के साक्षात मिलन का आनन्द अनुभव करती थी। हनुमान द्वारा लाये हुए सीता के आभूषणों को देखकर रामचन्द्रजी भी अत्यन्त प्रसन्न हुए थे।
श्री पांडवचरित्र में भी कहा गया है कि द्रोणाचार्य की प्रतिमा स्थापित करके उनके पास से एकलव्य नाम के भील ने अर्जुन जैसी धनुषविद्या सिद्ध की थी।
उपरोक्त दृष्टांत ऐसे भी हैं जिनमें शरीर का विशेष आकार नहीं है, ऐसी निर्जीव वस्तुओं से भी सन्तोष का अनुभव प्राप्त होता हुआ देखा जा सकता है तो फिर साक्षात् परमात्मा के स्वरूप का बोध कराने वाली प्रभुप्रतिमा जिसमें पूर्ण आनन्द ही है, वह मोक्ष का कारण क्यों न बने? शान्त मुद्रावाली श्री वीतराग परमात्मा की प्रतिमा की, उनके नाम-ग्रहण
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