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________________ देवों का जीवन ही है। क्रोध, रोष, ई• अथवा सहिष्णुता, माया अथवा दम्भ, अनीति अथवा अनाचारादिदोषों को रोकने की इस जगत् में सत्य प्रेरणा यदि किसी भी स्थान से प्राप्त हो सकती है तो यह भी श्री तीर्थंकरदेवों के आदर्श जीवन से ही प्राप्त हो सकती है। श्री तीर्थकर देयों का आदर्श जीवन दूसरों में रहने वाले सभी दोषों और विकारों को प्रकट में लाता है तथा योग्य आत्माओं में उन दोषों को बढ़ने से रोकता है तथा उनका नाश भी कर देता है। इस जगत् में जो कोई अच्छाई, उज्ज्वलता अथवा पवित्रता आदि दिखाई देती है, वह सब प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से तीर्थंकरदेवों के अति उज्ज्वल तथा पवित्र जीवन का ही प्रभाव है। उन उद्धारकों के जीवन की भव्यता असंख्य आत्माओं को अपने विकासस्थान से आगे बढ़ने में अनायास रूप से एक सबल निमित्त रूप सिद्ध हुए बिना नहीं रहती। सभी जीवों के विकास में समान रूप से उपकारक श्री तीर्थंकरदेवों का उपकार स्मृतिपट पर ताजा बना रहे तथा उसका विस्मरण न हो, इस कारण उनकी उपस्थिति एवं अनुपस्थिति में उनकी प्रतिमा तथा मन्दिरों द्वारा भक्ति करने की प्रथा विवेकी वर्ग में हमेशा होती है, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। संसार पर किये हुए उनके उपकार बुद्धिशाली आत्माओं को सहज रूप से वैसा करने की प्रेरणा देते हैं। इस उपकार को समझने वाले उनकी प्रतिमा के दर्शन किये बिना अन्न या जल भी नहीं लेते। पूरे दिन यदि दर्शन नहीं हो तो उपवास करते हैं। हमेशा त्रिकाल-दर्शन तथा सात बार चैत्यवन्दन अवश्य करने की प्रतिज्ञा धारण करते हैं। श्री तीर्थंकरों के प्रति इस महान् पूज्यभावना के परिणामस्वरूप स्थान-स्थान पर बड़े-बड़े मन्दिर स्थापित होते हैं और उनमें बहुत सी मूर्तियाँ प्रतिष्ठित होती हैं। बड़े शहर, कल्याणक-स्थलों तथा अन्य महत्त्वपूर्ण व सामान्य स्थलों में, अनेक मन्दिर एवं प्रतिमाएँ अस्तित्व में आती हैं। विवेकी आत्माएँ सदा ऐसे सुन्दर अवसर की हार्दिक कामना करती हैं कि सारी पृथ्वी श्री जिनमन्दिरों मे मुसज्जित हो। आधुनिक संस्कृति के पुजारी को दुनिया में हर स्थान और हर गाँव में हाई स्कूल, हॉस्पिटल अथवा पोस्ट ऑफिस आदि स्थापित करने की महत्त्वाकांक्षा होती है। इससे भी अनेक गुणी महत्त्वाकांक्षा श्री तीर्थंकरदेवों के सर्वोच्च गुणों को पहचानने वाली आत्माओं के दिल में मन्दिरों एवं मूर्तियों की सर्वत्र प्रतिष्ठा करने की होती है। तीर्थंकरों के दर्शन से कोई वंचित न रह जाय, इस उद्देश्य से बड़े-बड़े तीर्थ बनवाये जाते हैं, बड़े-बड़े यात्रागमन, समारम्भ, चैत्य, रथोत्सव, महापूजा और ऐमी अन्य कई उत्साहजनक प्रवृत्तियाँ करने में आती हैं और ऐसा करके थाना नया प्रज्ञा का तीर्थंकरों की -45
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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