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________________ - मूर्ति का श्रेष्ठ आलम्बन इतने विवेचन से यह स्पष्ट हो गया होगा कि जितनी प्राचीनता संसार के इतिहास की है, उतनी ही प्राचीनता मूर्तिपूजा की है। इसीलिये विश्व के इतिहास के साथ ही संसारी जीवों के कल्याणार्थ परम आवश्यक मूर्तिपूजा का इतिहास भी प्राप्त होता है। जीवों के कल्याण और मूर्तिपूजा, दोनों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। परम पुरुषों की मूर्तियों के शुभ आलम्बन से संसारी आत्माओं की पापवासना मंद पड़ती है। विषय-कषाय का वेग घटता है। आरम्भपरिग्रह के त्याग की भावना का जन्म होता है, सन्मार्ग की ओर अग्रसरता स्थायी बनती है और सदा उच्च गुणों का आदर्श मिलता रहता है। मूर्तिपूजा का विरोध उत्पन्न होने का कारण मूर्तिपूजा प्राचीन तथा कल्याणकारी होने पर भी उसका विरोध कब से, किसके द्वारा और किस कारण से हुआ, इसका इतिहास भी जानना आवश्यक है। विश्वस्त तथ्यों से यह सिद्ध होता है कि विक्रम की 7 वीं शताब्दी पूर्व समस्त संसार मूर्तिपूजा का उपासक था। सर्वप्रथम लगभग 1300 से 1400 वर्ष पूर्व मूर्तिपूजा के विरुद्ध आवाज पैगम्बर मुहम्मद ने अरबिस्तान में उठाई थी क्योंकि उस देश में मूर्तिपूजा के नाम पर अत्याचार बहुत बढ़ गये थे। सिर के बाल बढ़ जाने से सिर को ही काट डालने की क्रिया जितनी अव्यावहारिक है उतना ही अव्यावहारिक था अत्याचार का विरोध करने के बजाय मूर्तिपूजा का विरोध करना। पैगम्बर मुहम्मद ने यह विरोध किसी भी प्रमाण के आधार पर नहीं पर तलवार के बल पर किया। केवल आर्य प्रजा में ही नहीं पर पाश्चात्य देशों में भी मूर्तिपूजा का बहुत प्रचार था, ऐसे ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध हैं। आस्ट्रेलिया में भगवान महावीर की मूर्ति, अमेरिका में तासमय सिद्धचक्र का गट्टा, मंगोलिया में अनेक भग्न मूर्तियों के अवशेष तथा मक्का-मदीना में जैन मन्दिर (जो हाल ही में वहाँ से बदल दिया गया है) आदि मूर्तिपूजा के प्रमाण हैं। व्यक्तिगत रूप से कोई मूर्तिपूजा को नहीं माने, यह अलग बात है परन्तु देशाटन करने वालों की जानकारी से यह यात छिपी हुई नहीं है कि आज भी जगत् में ऐसा प्रदेश खोजने पर भी नहीं मिल सकता जहाँ मूर्तिपूजा का प्रचार न हो। मुस्लिम मत की उत्पत्ति के बाद मुसलमानों ने भारतवर्ष पर कई आक्रमण किये और धर्मान्धता के कारण इस देश के आदर्श मन्दिर-मूर्तियों को तथा शिल्प-कलाओं को नष्ट-भ्रष्ट किया। फिर भी 15 वीं शताब्दी तक आर्य प्रजा पर मुस्लिम संस्कृति का थोड़ा भी प्रभाव नहीं पड़ा। - 39 39
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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