________________
दुर्गुणों को छोड़ने का प्रयत्न करूँ तथा जो मार्ग भगवान ने बतलाया है उसका अनुसरण करूँ, सुख एवं कल्याण के लिए जैसा व्यवहार करने का उन्होंने फरमाया है, वैसा ही व्यवहार मैं करूँ।
इस प्रकार की शुभ भावना से स्तुति करता हुआ जीव अपने अशुभ तथा क्लिष्ट कर्मों का नाश करता है इससे समकित की शुद्धि होती है और परम्परागत मोक्ष के अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है।
श्री जिनप्रतिमा की पूजा तथा स्तुति से इस प्रकार के साक्षात् तथा परम्परागत अनेक लाभ होने से प्रत्येक भव्य आत्मा को जिनप्रतिमा का प्रयत्नपूर्वक अत्यन्त आदर करना चाहिए। - प्रश्न 80 - पूजा और प्रतिष्ठा महामंगलकारी हैं, तो फिर मूर्ति की प्रतिष्ठा में शुभाशुभ मुहूर्त देखने का क्या प्रयोजन?
___ उत्तर - किसी योग्य शिष्य को जब दीक्षा देनी होती है तब शुभ मुहूर्त क्यों देखा जाता है? क्या दीक्षा अमंगलकारी है कि जिसके लिए शुभ मुहूर्त की आवश्यकता होती है? शुभ नक्षत्र तथा शुभ ग्रह, शुभ सूचक हैं व अशुभ ग्रह तथा अशुभ नक्षत्र, अशुभ सूचक हैं, अतः प्रत्येक शुभ कार्य में शुभ मुहूर्त देखने की आवश्यकता है।
___भगवान स्वयं तो वीतराग हैं और उनकी मूर्ति भी सभी जीवों का भला करने वाली है फिर भी कोई दुष्ट आत्मा उनकी आशातना, निंदा अथवा आज्ञा का उल्लंघन करे और परिणामस्वरूप उसका अहित हो तो उसमें भगवान या मूर्ति का दोष नहीं है।
शास्त्रकारों के आदेशानुसार सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध, तप, जप, नियम, ध्यान आदि प्रत्येक क्रिया विधिवत् करने से लाभ करती है तथा प्रतिकूल रूप से करने पर हानि करती है। यही बात मूर्ति की प्रतिष्ठा के विषय में भी समझनी चाहिए।
शास्त्राभ्यास भी असमय और अविधि से करने की मना ही है। उसी भाँति मूर्तिपूजा आदि ममस्त लाभकारी क्रियाएँ जिस मात्रा में भावपूर्वक तथा विधि-मम्मानपूर्वक करने में आती है, उतनी ही मात्रा में फलदायी होती हैं। मुनिराज सदा सबके हितकारी होते हुए भी जिस भाव से उनकी ओर देखा जाता है, उसी प्रकार का फल जीव प्राप्त करते हैं। जैसे किसी महासती साध्वी को रूपवान देखकर किसी विषयी पुरुष को कामविकार उत्पन्न हो जाय तो क्या इससे वह साधु या साध्वी अवन्दनीय हो जायेगी? उन्नीसवें तीर्थंकर भगवान श्री मल्लिनाथजी की प्रतिमा देखकर छह राजा कामातुर हो गये। तो क्या इससे भगवान श्री मल्लिनाथजी की महिमा समाप्त हो गई? कामीजनों के मोहनीय कर्म के उदय से उनकी खराव गति होती है, उसका कारण उनके स्वयं के क्लिष्ट कर्म हैं, न कि वे महापुरुष। 'अनार्य लोगों को श्री जिनमूर्ति से कहाँ लाभ होता है ?' ऐसा प्रश्न करने वाले को
-171