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________________ प्रभु स्वभावी हैं और मैं विभावी हूँ। प्रभु अजर हैं और मैं सजर हूँ। प्रभु अक्षय हैं और मैं क्षय को प्राप्त होते रहने वाला हूँ। प्रभु अशरीरी हैं और मैं सशरीरी हूँ। प्रभु अनिंदक हैं और मै निंदक हूँ। प्रभु अचल हैं और मैं चल हूँ । प्रभु अमर हैं और मैं मरणशील हूँ। प्रभु निद्रा रहित हैं और मैं निद्रा सहित हूँ। प्रभु निर्मोह हैं और मैं मोह वाला हूँ। प्रभु हास्य रहित हैं और मैं हास्य सहित हूँ। प्रभु रति रहित हैं और मैं रति सहित हूँ । प्रभु शोक रहित हैं और मैं शोक सहित हूँ। प्रभु भय रहित हैं और मैं भयभीत हूँ। प्रभु अरति रहित हैं और मैं अरति सहित हूँ । प्रभु निर्वेदी हैं और मैं सवेदी हूँ। प्रभु क्लेशरहित हैं और मैं क्लेशसहित हूँ । प्रभु अहिंसक हैं और मैं हिंसक हूँ। प्रभु वचन - रहित हैं और मैं मृषावादी हूँ। प्रभु प्रमाद रहित हैं और मैं प्रमादी हूँ । प्रभु आशा रहित हैं और मैं आशावान् हूँ। प्रभु सभी जीवों को सुखदायी हैं और मैं अनेक जीवों को दुःखदायी हूँ। प्रभु वंचना रहित हैं और मैं वंचक हूँ। प्रभु आस्रव रहित हैं और मैं आस्रव सहित हूँ। प्रभु निष्पाप हैं और मैं पापी हूँ । प्रभु कर्मरहित हैं और मैं कर्म सहित हूँ । प्रभु सभी के विश्वासपात्र हैं और मैं अविश्वासपात्र हूँ । प्रभु परमात्मपद को पहुँचे हुए हैं और मैं बहिरात्मभाव में घूम रहा हूँ! आदि । इस प्रकार प्रभु तो अनेक गुणों से परिपूर्ण हैं और मैं सब प्रकार के दुर्गुणों से परिपूर्ण हूँ। इसी कारण मैं इस संसाररूपी वन में अनंतकाल से भटक रहा हूँ। आज मेरे भाग्योदय से मुझे भगवान की मूर्ति के दर्शन हुए तथा उसके आलम्बन से मुझे प्रभु के गुरु का तथा मेरे अवगुणों का स्मरण हुआ। प्रभु के गुण तथा मेरे अवगुण समझ में आये। अब मैं अपने 173
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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