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पाठक समझ सकेंगे कि ऊपर के प्रथम दो नमस्कारों में तो 'नमोत्युणं' का पाठ मोक्षगति तक का कहा और पिछले नमस्कार में अपने गुरु को वन्दन किया है, उन्हें अरिहन्त भगवान नहीं कहा है। तथा उसके स्थान पर अरिहन्त के गुणों के वर्णन वाला 'शकस्तय' 'नमोत्थुणं' नहीं कहा है। मात्र 'नमोत्थुणं' नमस्कार हो। इतना एक पद आने मात्र से क्या सम्पूर्ण 'शकस्तय' पाठ आ गया? नहीं फिर भी ऐसा कहने वाले तो मृषावाद पाप का ही आचरण कर रहे हैं।
प्रश्न 67 - 'द्रौपदी ने तो केवल एक ही बार पूजा की है, इसका उल्लेख है और यह भी मिथ्यादृष्टि अवस्था में। क्योंकि निदान (नियाण) पूर्ण हुए यिना सम्यक्त्य की प्राप्ति कैसे हो सकती है?
उत्तर - जिस सूत्र में द्रौपदी के नित्य कर्म का उल्लेख हो, उसी सूत्र में उसके नित्य पूजन का उल्लेख हो सकता है। सर्वत्र तो कहाँ से हो? क्या एक ही एक बात शास्त्रकार बारम्बार लिखते रहेंगे?
विवाह के समय सैकड़ों राजपुत्र आए हुए थे, उस समय की धमाल के बीच भी द्रौपदी अपने नित्यकर्म-पूजा को भूली नहीं है और उसने अत्यन्त ही विनयपूर्वक शुभ भाव युक्त होकर शक्रस्तव से परमात्मा की भक्ति की है, क्या वह अन्य शान्ति के समय परमात्मा की पूजा नहीं करती होगी?
सूत्रपाठ से ही स्पष्ट पता चलता है कि वह नित्य पूजा करने वाली है। सम्भव है पद्मोत्तर राजा के वहाँ पराधीन अवस्था में रहने के कारण व जिनमन्दिर आदि की सामग्री का अभाव होने से उसने पूजा नहीं की हो, फिर भी वहाँ रहते हुए भी छट्ठ, अट्ठम आदि तपश्चर्या स्वाधीन होने से, उसने की ही है।
जिन-पूजा की बात का तो एक बार उल्लेख भी हुआ है, परन्तु भोजन-पान-शयन आदि का तो एक बार भी उल्लेख नहीं हुआ है, तो क्या वह वे कृत्य नहीं करती होंगी?
तुंगिया नगरी के श्रावकों ने साधुओं को एक बार वन्दन किया था इस बात का उल्लेख है तो क्या उन्होंने दूसरी बार वन्दन नहीं किया होगा?
__ पूजा करते समय द्रौपदी को सम्यक्त्व था, यह बात आगे सिद्ध कर चुके हैं। निदान की पूर्णाहुति के पहले सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती है - यह बात करना सर्वथा प्रमाण रहित
श्री दशाश्रुतस्कन्ध में नौ प्रकार के निदान कहे गए हैं, उनमें 7 प्रकार के निदान तो कामभोग के हैं। वे यदि अत्यन्त तीव्र रस से बाँधे हों तो सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती है और मन्दरस से बाँधे हों तो सरलता से सम्यक्त्व की प्राप्ति हो सकती है।
जैसे - 'कृष्ण का वासुदेव पद प्राप्ति का निदान मन्द रस वाला होने से वे सम्यक्त्व
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