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________________ अरिहन्ताणं भगवंताणं' अर्थात् 'अरिहन्त परमात्मा को नमस्कार हो' - इस प्रकार अरिहन्त परमात्मा का नाम लेकर ही स्तुति की है, फिर भी कामदेव का झूठा नाम देना योग्य नहीं 'नमुत्थुणं - सूत्र' में भी उसने कौनसी मांग की है ? 'तिन्नाणं तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं, सव्यन्नूणं सय्यदरिसीणं' - अर्थात् " हे परमात्मा ! आप तर चुके हो और मुझे तारो। आप केवलज्ञान प्राप्त कर चुके हो और मुझे भी प्राप्त कराओ। आप कर्म से मुक्त बने हुए हो और मुझे भी कर्म मुक्त करो।' " उपर्युक्त प्रार्थना के द्वारा उसने मोक्षफल की ही याचना की है। क्या अरिहन्त को छोड़कर कोई मिथ्यात्वीदेव मोक्ष देने में समर्थ है ? अथवा अनुपम गुणयुक्त अन्य कोई देव है, जिसकी इस प्रकार से स्तुति हो सकती है ? अन्त में उसने कहा है - 'सिद्धिगइनाम - धेयं ठाणं संपत्ताणं' - सिद्धिगति नामक स्थान को जिन्होंने प्राप्त किया है। . तो सोचे श्री अरिहन्त (सिद्ध) को छोड़कर अन्य कौनसे देव सिद्धिगति नामक स्थान को प्राप्त हो चुके हैं ? इस सूत्र में 'सुयोग्य पति की याचना' का कोई शब्द ही नहीं है । फिर भी सम्यग्दृष्टि श्राविका के लिए अयोग्य कल्पना करना, क्या उचित है ? प्रश्न 66 - 'नमोत्थुणं' का पाठ अन्य देवों के पास नहीं कह सकते हैं तो फिर अम्बड़ श्रमणोपासक के सात सौ शिष्यों ने अपने गुरु के सामने वह पाठ क्यों कहा? उत्तर - 'नमोत्थुणं' में वर्णित गुण अरिहन्त सिवाय अन्य किसी देव में नहीं हो सकते हैं। इस कारण शास्त्र में कहीं भी अन्य देव के सामने कहे हुए का उल्लेख नहीं है। अम्बड़ संन्यासी श्रावक के सात सौ शिष्यों ने 'नमोत्थुणं' सूत्र जिस प्रकार कहा था, उसका उल्लेख ‘श्री उववाई सूत्र' में निम्नानुसार है - 'नमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं जावसंपत्ताणं, णमोत्थुणं समणस्स, भगवओ महावीरस्स, जाय संपाविउकामस्स, नमोत्थुणं अंबडस्स, परियायगस्स अम्ह धम्मायरियस्य धमोवएसगस्स' अर्थ - (वे 700 शिष्य हाथ जोड़कर इस प्रकार कहते हैं ।) 'नमस्कार हो अरिहन्तों को, यावत् मोक्ष प्राप्त करने वालों को, नमस्कार हो श्रमण भगवान महावीर परमात्मा को, यावत् मुक्ति पाने की इच्छा वालों को ! नमस्कार हो अम्बड़ परिव्राजक को, हमारे धर्माचार्य और धर्मोपदेशक को | 154
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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