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________________ आजीविका आदि के अनेक पाप किये होंगे, अत: सबसे पहले वे ही अवन्दनीय बन जाएंगे। कर्म के प्रभाव से आत्मा को अनेक विडम्बनाएँ सहन करनी पड़ती हैं, अतः भवचक्र में पूर्व में किए गए अनुचित कार्यों के आधार पर इस जीवन का एकान्ततः मूल्यांकन नहीं हो सकता है। प्रश्न 64 - पाँच पति करने वाली द्रौपदी को श्राविका कैसे कह सकते हैं? उत्तर - तीर्थंकर, वासुदेव, चक्रवर्ती तथा अन्य राजा महाराजा व श्रेष्ठियों के हजारों रानियाँ व स्त्रियाँ होते हुए भी शास्त्रकारों ने उन स्वदारा सन्तोषीजनों को परम सम्यग्दृष्टि श्रावक गिना है और अनेक तो उसी भव में मोक्ष में भी गए हैं। इस न्याय से द्रौपदी के द्वारा पूर्वकृत निदान के फलस्वरूप जनसाक्षी में अनासक्त भाव से पाँच पुरुषों के साथ विवाह किया गया था। इस कारण उसके शीलव्रत को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँच सकती है, क्योंकि शास्त्रकारों ने उसे महासती कहा है। निदान के फलस्वरूप द्रौपदी का दृष्टान्त एक अपवाद रूप होने से अन्य स्त्रियाँ उसका अनुसरण नहीं कर सकती हैं। प्रश्न 65 - विवाह के प्रसंग में योग्य वर की प्राप्ति के लिए द्रौपदी ने कामदेव की पूजा की है, जिनप्रतिमा की नहीं, क्या यह बात बराबर है? उत्तर - सोचने की बात यह है कि महान् ऋद्धिमान, निर्मल सम्यक्त्व के स्वामी और एकावतारी सूर्याभदेव के द्वारा की गई जिनप्रतिमा की पूजाविधि का निर्देश द्रौपदी की पूजा के अधिकार में किया गया है। इससे सूर्याभदेव सम्यग्दृष्टि है, उसी प्रकार द्रौपदी भी सम्यग्दृष्टि ही सिद्ध होती है तथा सूर्याभदेव ने जिस प्रकार श्री जिनमूर्ति की सत्रह भेद से पूजा की है, उसी प्रकार से द्रौपदी की पूजा भी सत्रह प्रकार की है, ऐसा समझना चाहिए । क्योंक सम्यग्दृष्टि की और मिथ्यादृष्टि की देव पूजाविधि तथा भावना में बड़ा अन्तर है । सलाह सूचन वाले दोनों व्यक्ति समानधर्म का पालन करने वाले हों, तभी सलाह दी जा सकती है, अन्यथा नहीं । द्रौपदी ने कामदेव आदि जैसे मिथ्यात्वीदेव की पूजा की होती तो उसकी तुलना भी मिथ्यात्वी पुरुष की पूजा से की जाती, परन्तु यहाँ तो सूर्याभदेव जैसे दृढ़ सम्यक्त्वधारी देव के साथ तुलना की गई है तो फिर द्रौपदी को भी समकितधारी श्राविका कहने में क्या आपत्ति है? योग्य वर की प्राप्ति के लिए द्रौपदी ने पूजा की होती तो उसकी स्तुति भी इस प्रकार होनी चाहिए - 'हे कामदेव ! यदि आपकी सेवा से खूबसूरत और गुणवान वर मिलेगा तो अमुक कीमत की मिठाई आपको चढाऊंगी।' मैं : परन्तु द्रौपदी ने उपर्युक्त प्रार्थना तो नहीं की है, बल्कि उसने 'नमुत्थुप 153
SR No.006152
Book TitlePratima Poojan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay, Ratnasenvijay
PublisherDivya Sandesh Prakashan
Publication Year2004
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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