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परन्तु यह ध्यान में रखना कि ज्ञान, दया-पालन के लिए हैं, दया को एक ओर रखने के लिए नहीं । दया अथवा दया को लाने वाली क्रिया, इसकी ही यदि कीमत नहीं करें, तो इसके लिए प्राप्त ज्ञान की भी कींमत कुछ नहीं है। दुनिया में जीने की कीमत है, इसलिए खाने की कीमत है । यदि जीने की कीमत न होती तो इसे बनाये रखने के लिए खाने की भी कभी कोई कीमत नहीं हो सकती ।
इसी प्रकार दया की कीमत है और इसीलिए दया को लाने वाले ज्ञान की कीमत है । तप की कीमत है इसीलिए तप की महिमा समझाने वाले ज्ञान की कीमत है । श्री जिनपूजा कीमती है इसीलिए श्री जिन और उनकी पूजा का प्रभाव समझाने वाले ज्ञान की कीमत है । इससे विपरीत समझाने वाले ज्ञान की कींमत, जैनशासन में फूटी कौड़ी के बराबर भी नहीं
है।
मोक्ष हेतु क्रिया के प्रति भाव पैदा करने वाले ज्ञान को ही सम्यग्ज्ञान माना है। मोक्ष जितना महान् है, उसकी प्राप्ति के उपायों को समझाने वाला ज्ञान भी उतना ही महान् है। जो ज्ञान मोक्ष एवं मोक्षमार्ग से विमुख करे, भयवृद्धि के मार्ग पर ले जाये, तप, संयम तथा जिनपूजादि सद् अनुष्ठानों से आत्मा को वंचित रखे, उस ज्ञान को शास्त्रकारों ने मिथ्याज्ञान की उपमा देकर घृणा योग्य बताया है।
संसार जितना घृणित है, उतना ही संसारवृद्धि के मार्ग पर ले जाने वाला ज्ञान भी घृणित है। ऐसे मिथ्याज्ञान को प्राप्त करने की अपेक्षा अज्ञानी अथवा अल्पज्ञानी रहना हजारगुना अच्छा है। सम्यग्ज्ञानी की छत्रछाया में रहने वाले अज्ञानी या अल्पज्ञानी का मोक्ष होता हैं, परन्तु मिथ्याज्ञानी की सिद्धि शास्त्रकारों ने कहीं नहीं बताई है।
सम्यग्ज्ञान जीव को जिनपूजादि शुभ कार्यों में लगाता है, इसलिए उस ज्ञान की वृद्धि हेतु तनतोड़ प्रयास करना सम्यग्दृष्टि आत्माओं का परम कर्तव्य है।
प्रश्न 63 - द्रौपदी ने पूर्व भव में गलत कार्य किए थे, अतः उसकी पूजा कैसे मान्य की जाय?
उत्तर - गत जन्म में किये गये कुकर्मों के अनुसार वर्तमान जन्म का मूल्यांकन किया जाय, तब तो अनेक महापुरुषों ने भी अपने पूर्व भवों में अनेक गलत कार्य किये हैं, अतः आपके नियमानुसार तो वे भी पूज्य नहीं गिने जायेंगे। वर्तमान गुरु आदि भी वन्दनीय नहीं रहेंगे, क्योंकि उन्होंने भी पूर्व जन्म में अनेक ऐसे कार्य किए हैं, जिसके फलस्वरुप उन्हें भी संसार-चक्र में भ्रमण करना पड़ा है और उन्हें कायक्लेश आदि महान् व्यथाएँ सहन करनी पड़ी हैं। यदि उन्होंने एक मात्र शुभ ही कार्य किये होते तो उनका स्थान मुक्ति में ही होता । पूर्व जन्म का विचार तो एक ओर रहने दें, इस जीवन में भी उन्होंने गृहस्थ जीवन में
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